Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 448
________________ नेमेस नेरियो नेहवत्ति नोय नोक्य सेट्टि नोकिय नोटवराष्ट्र नोग नोणम्यवादि नोळवि-सेट्टि नोटस्वादि पंचाणचद पंडराजा पद्मळना पचप्पलि पलदेव पचवमदि पट्टण खामि पद (मदि) पल्वार्दिक (अन्वय) पहिग- देव पटिपोम्बुपुर पटियर-दोरपन्य पडिलगेोरे प पण्डर पण्डित पण्डित पारिजात पतनम् ५०२ १३ | पदिर्कण्डुगं १२७ | पद्म २१९ | पद्मगन्दिविद्धान्तचक्रवर्ति २१९ | पद्मनन्दी १९७,२१२ | पद्मनाभ १९८ १४३ ૨૪૮ २९७ ૨૪ २९९,३०१ पद्मप्रभ पद्मावती पनसवाढि पनसोग पन्तिगणग ११ पन्दङ्गचलि २ पप्पक १४४ पनदि २५३ पर्मनडीय १२१ २१९ २०९ २०९ ९०,९४,९५,१२१,१४९, १७४ | परचकराम १७४ | परमगूळ २१३ | परमेश्वर २१३ | परतूर ( गण ) १९७-२१२ | परिधासिका (कुल) २२२ | परियल- देवि २७७ २२७ १९८,२१३,२४८,२७७, २९९,३०१ २१९ २२३,२३९,२४० १०६ १०६ १७३ १४३ १२१ १९६,२४०,२४१ १०७ ६९ २०१ १७२ १३१ १०५ २१३,२४८ | पर्व्वत १५० पर्श्व १२७ | पलाशिका ९६,९९,१००,१०१,१०२ १०२ १७९ परकीर्ति २१३ | पत्रपण्डित १६० पलव १०३,१०४ २६९ २६९ ९९,१०८, १२१, १२३,

Loading...

Page Navigation
1 ... 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455