Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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इस अनुक्रमणिका जैन मुनि, आर्यिका, कवि, संघ, गण, गच्छ, ग्रन्य तथा राजा, रानी, गृहस्थों और सब प्रकारके स्थानोंके नाम समाविष्ट किये गये हैं । नामके पश्चात् के अंक लेख नम्बर समझने चाहिये ।
अ [ कक ]
अकलक
अकालवर्ष
अक्षपाद
अंग
अदेव भटार
अङ्ग अचलदेवि
अनुक्रमणिका । [ विशेष नाम-सूची ]
४४ | अनन्तकीर्तिदेव २०७,२१३,२१४,२१५, अनन्तपाळय्य
अजितसेन भट्टारक
अजनन्दि
अडकल
अत्तिकाम्बिका
अत्तिलिनाण्डु
अदरादित्य
afteछात्रा
अचला अजितसेन
अजितसेन देव
२१४
अजितसेनपण्डित १६८, २४८, २६६ | अव्वलब्बा
अजितसेनपण्डितदेव
२२६ / अन्य
अवरसेन
૨૮
२१७,२७७ | अनन्तवीर्य २१३,२६४,२६७,२६९ ९५,१२४,१२७ | अनन्तवीर्य्यसिद्धान्तकर २७७,२९९ २१५ | अनन्तवीर्य्यय अनवद्य-दर्शन
२
१९३ | अन्दरि (नगर)
२८८ | अन्दरि-आलत्तूर
२१३ | अन्धकासुर
७३ अन्धासुर
२१५,२३१,२७४ | अन्ध्र
१३४, १३५,
१४४
अव्वलदेवि
२२४
अभणन्दि (अभयनन्दि )
अभयणन्दि- पंडित - देवर
अभिनन्दनाचार्य
१८६
अभिमन्यु
१४४ | अभिमानदानी
२०८
२४३
अमळचन्द्र
७ / अमोघवर्ष
१५४
१४५
१२१,१२२
१४२
२१३
२१३
३०१
२१३
१४२
२७३
२२८
९५
१५०
२१३
२२८
२६९
२२४
१२७,१४२,१८२
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