Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 429
________________ जैन - शिलालेख संग्रह आरुं पोल्वरे युद्ध-दैत्य-विजय - श्री पार्श्व-भट्टारकोदार-श्री-पद-पङ्कज-भ्रमरन सौजन्य - वाक्- सारनम् । सारोदार जिनेश्वराचैन - नियोगोद्योग - विश्रान्त... | .... श्री - वधु -कान्तनं पृथुल - कीर्त्याशान्तन शान्तनं ॥ श्री विजय पार्श्व देव वि जावगल गङ्गऊरदलि खण्ड- स्फुटितजीर्णोद्वारके जावगल्लु । रङ्ग-भोगद विद्यावन्तरिगे गङ्गऊरु । श्रीमन्नयकीर्त्ति - सिद्धान्त - चक्रवर्त्तिगळ शिष्यरु नेमिचन्द्र पण्डित - देवर श्री-मूलसघद समुदायङ्गळु अवर शिष्य - सन्तानगळे ई-धर्म्मवना-चन्द्रार्कतारंबरं सलेसुरु || ૨૮૦ [ जिनशासनकी प्रशंसाके बाद पार्श्व- जिनेश्वर का माहात्म्य । होय्सल राजाओं के वशकी परम्परा ब्रह्म-अत्रि-सोम पुरुरव आयु नहुष-ययाति-यदु, जिसके वंश में सल उत्पन्न हुआ। जिस समय, सलके राज्यकी समृद्धिके लिये, कोई जैन- त्रतीश मन्त्रोंare raagrat पद्मावती देवीको वशमे कर रहा था, एक चीतेने उछल कर आक्रमण किया, चीता इससे उसकी सिद्धि भंग करना चाहता था । उसी समय योगीश्वरने अपने चामर ( या पंखे ) की मूठको पकडकर कहा 'पोयू सल' (सल, मारो ). इतना उनके कहते ही उसने निडर होकर उसे मार दिया; उस समयसे यदु राजाओंका नाम 'पोयसळ' पड गया और उनके झण्डेवर चीतेका चिह्न फहराने लगा । उस 'यक्षी' के प्रसादसे ऋतु वसन्त हो गई और उसी ऋतुके नामसे राजाने उसका 'वासन्तिका' देवीके नामसे पूजन किया । + उसी वशमें विनयादित्य उत्पन्न हुआ । उसका पुत्र एरेयंग था । उससे एचल- देवी के द्वारा, ब्रह्मा, विष्णु और शिवकी तरह, बल्लाल, विष्णु और उदयादित्य उत्पन्न हुए । इन सबमे विष्णुका नाम सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हुआ । ( उसकी दिग्विजयका वर्णन, उसकी प्रशंसा )

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