Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 421
________________ जैन- शिलालेख संग्रह सितातप निवारणन्त्रितयचामरोद्भासनः । ददातु यदधान्तकः पदविनम्रजम्भान्तकः स नस्सकल-धीश्वरो विजय- पार्श्वतीर्थेश्वरः ॥ सिद्धं नमः ॥ ४७२ श्रीमन्नतेन्द्रमणिमौलिमरीचिमाळामाळार्चिताय भुवनत्रयधर्मनेत्रे | कामान्तकाय जितजन्मजरान्तकाय भक्त्या नमो विजय-पार्श्व- जिनेश्वराय || होयसळोव्वारा वंशाय स्वस्ति वैर - महीभृताम् || खण्डने मण्डलाग्राय शतधाराग्रजन्मने ॥ तदन्वयावतारम् ॥ नेगळ्दा ब्रह्मनिनत्रि सोमनेसेवा - श्री सोमज भूतल पोगळुत्ति- पुरूरवो पति सन्दायु-महीवल्लभं । सोगयिप्पा - नहुषं ययाति यदुवेम्बुवश - सन्तानदोळ् । नेगळ्द श्री-सळनानतान्य-निकरं सम्यक्त्व - रत्नाकरम् ॥ आ-सळ - नृपतिय राज्यश्री-संवर्द्धन मने दे माडुत्र बगेय | वासव वन्दित- जिन-पूजा सहित सकल-मंत्र-विद्या-कुशलम् ॥ मुदर्दि जैन-व्रतीशं शशकपुरद पद्मावती - देविय म- । त्रदिनादं साधिसल् विक्रियेयोळे पुलि मेल् पाये योगीश्वर कुंचद-काविन्दान्तदं पोयसळ एनलभय पोखुदु पोय्सळाङ्कम् । यदु-भूपग्र्गादुदन्दिन्देसेदुदु सेळेयिं लोक- शार्दूल- चिह्नम् ॥ आ - सन्द-पक्षी - वरदो वसन्तं । लेसागे तात्कालिक नामदिन्द । वासन्तिका देवतेयेन्दु पूजा । व्यासङ्ग व माडिदना-नृपाळम् ||


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