Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 417
________________ जैन- शिलालेख संग्रह द्रावनिजक्के दान-गुणमधिगे गुण पमराचळक्के सं- । भावित-धैर्यमग्गलिपुदेन्दडे गङ्ग- कुभृत् कुमार """ । ........ पाळकंगे दोरेयप्परे मिक्क कुभृत् कुमारकर ॥ ......... यिन्दं क्षीराब्धियु- । मसवसर्दि पेच्चुवन्ते गङ्गान्वयमु । पसरिसे पेर्चुगे निन्निन्दसदळमौदार्य शौर्य गङ्ग - कुमारा || श्रीमन्महामण्डलेश्वरनेरेयङ्ग- होय्सण- देवनव्यिं गण्डर दावणि हुसिबर शूल मावन गन्ध-वारण हेम्माडि - देवनेडेदोरे "सायिरमुम हरिगेय नेलेवीडिनोळु सुखदिनाळुत्तिर्छु कुन्तलापुरदोळु चैत्यालयमं माडि देवर पूजा-विधानक्क चातुर्वर्ण- सघ- समुदाय चतुस्- समयदाहारदानक खण्डस्फुटित जीर्णोद्धारक समुदाय मुख्य स्थानं माडि येडदोरे - मण्डलिनाडप्रभु-गावुण्डुगळकरेयलडि धर्म्म आरके येन्दु शक-वर्ष ९८९ नेय लवंग- संवत्सरद पुष्य-सु १३ दशि- गुरुवार - वुत्तरायण-संक्रमणदन्दु तम्म गुरुगळु श्री - प्रभाचन्द्र- सिद्धान्त - देवर काळं क िधारा- पूर्व्वक (क)माडि विट्ट दत्तिया ग्राम - दुभय • • • सर्व्व-नमस्यचल्लि हुनुवायदाय-सुङ्क-निधि - निक्षेप सर्व्व- वाधा - परिहार ॥ .. ४६८ मत्ता -राज- सर्व्वन्य सत्य- गङ्ग-देव नेडेहलिय नेलेवीडिनोळु सुखदिं राज्यं गेय्युत्तिर्दल्लि कुरुळिय - तीर्थदल गङ्ग - जिनालयन माडि सकवर्ष १०५४ नेय नन्दन - संवत्सरद चैत्र -सुपुण्णमियादिवारसोम-ग्रहणदन्दु तन्त्र गुरुगळु श्री माधवचन्द्र देवर काल कर्चि धारा - पूर्वक माडि वि दत्ति ... वण्ण ****** स्वस्ति श्रीमन्-महामण्डलेश्वर गङ्ग- हेम्र्म्माडि देवर सन्निधियल्लि सर्वाधिकारि वागिय हेग्गडे लोक्किमय्यन मग हेग्गडे - चन्दिमय्यं १ लेकिन १०५४=परिधावि, नन्दन = १०३४

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