Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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जैन-शिलालेख संग्रह (उन्म मितिनो) पञ्चवसादिकी नींव डालकर, वट्टल देवी और चारों भाइयोंशी उपस्थितिमें, कमलभद्रदेवके पैर धोकर, भुजबल-शान्तर-देवने (जैसा कि पर कहा गया है) गाँव और भूमियों दीं। इसीतरह उसके छोटे भाई ननि-शान्तर देवने तथा इसके छोटे भाई विक्रम शान्तरदेवने (जैसा कि लेसमें बताया गया है) गाँव और भूमियों दानमें दी और बसादिक इन दानोंको (जिलकी सूची लेस में दी हुई है) उन्होंने सभी करोंने मुक्त कर दिया। सीमायें, शाप और आशीर्वचन।]
[EC, VIA, Nagar til., n° 36 ]
हुन्मच-स्कृत तया कम [दिना काल-निर्देशका; पर लगभग २०७७ ई० का]
हुम्मदने, मानसम्मके ऊपर, दक्षिणकी तरफ़] श्रीमत्परमगमीरस्याद्वादामोघलाञ्चनम् ।
जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासन जिन शासनम् ।। नमो महते ॥
स्वस्ति-श्री रमणी-विनोद-भन्न यस्सोद(दूध)-वभः स्थलम् वाग्-देवी-वनिता-विकास-निळ्यो यत्याननाम्मोरुहम् । वीर-श्री-युनतेरभूत कुछ-गृह यद्-बाहु-दण्ड-द्वयम् यकीर्तिशारदिन्दु-कान्ति-विमला पादिशं वर्तते ।। साक्षादुन कुछ प्रमुनिज-नुज-प्रोडासि-औक्षेमकप्रवतीकृत-भूरि-गव्य-द्विद्वेषि-भूपाळकः । दीनानाय-जना बद्रीय-सु-महा-दानात् परेष्ट अदम् स श्रीनान् नुवि ननि-शान्वर इति ख्यातो भृशं भ्राजते ।। विमाति यत्याप्रतिमः प्रतापः नानोगतो (8) वैरि-महीपतीनाम् ।