Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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जैन-शिलालेख संग्रह ऐसा कहनेके बाद, उच्च नन्दगिरि उनका किला हो गया, कुवलाल उनका नगर बन गया, ९६००० उनका देश हो गया, निर्दोष जिन उनके देव हो गये, विजय उनकी युद्धभूमिकी साथिन हो गई, जिनमत उनका धर्म हो गया। मागे गनवाडि ९६००० की चतुर्दिक्-सीमा दी है।
राज्य प्राप्त करनेके वाद, दढिग और माधव दोनो, जव कोकण देशको अधीन करनेके लिये भा रहे थे, उन्होने मण्डलि देखी, जिसके बाहरी प्रदेशमे एक विशाल तालावको सफेद जल-कमलिनी और हजारपत्तेवाले विकसित कमल तथा बहुत-सी मछलियोंके शब्दोंसे आकर्षक जानकर वहीं उन्होंने अपने तम्बू गाड दिये । पहाडीकी सुन्दरता देखकर सिंहनन्धाचार्यने उन्हें वहाँ एक चैत्यालय निर्माण करनेकी प्रेरणा की, जिसे उन्होने मान्य किया।
और कुछ दिनोंके बाद वे कोलाल चले गये और शान्तिसे राज्य करने लगे। जैसे जैसे गग-वश बढता गया, दडिगके माधव नामका एक पुत्र हुमा, जिसने राज्य किया । उसका पुत्र हरिवर्मा, उसका पुत्र विष्णुगोप, जिसके मिथ्यामतके माननेके कारण, वे आभूषण विलीन हो गये थे। उसका पुत्र पृथ्वी गङ्ग हुआ, जिसने सत्यमत अङ्गीकार किया । उसका पुत्र तडजाळ माधव था। ___ इसका पुत्र अविनीत गङ्ग था । यह अपनी शत-जीवी वातको सुनकर, परीक्षाके लिये, अत्यन्त भयानक वाढवाली कावेरीमें कूद गया और फिर तैर कर निकल आया। यह पहा जिनभक्त था ।
उसके बाद दुर्विनीत गङ्ग हुआ, जिसका पुत्र मुष्कर था। मुफ्करके बाद क्रमले एकके बाद एक श्रीविक्रम और भूविक्रम हुए। भूविक्रमके नव-क और एरंग पुत्र हुए। इनमेंसे एरगके एरेयग पुत्र हुआ; उससे श्रीवल्लभ, उससे श्रीपुरुष, उससे शिवमार और उससे मारसिह । ___ मालव सप्तको स्वाधीनकर और एक पाषाणपर 'गङ्ग-मालव' खुदवाकर मारसिंहने कन्नमुज्जेके राजाके छोटे भाई जयक्सीको युद्धमें मारा ।
मारसिंहका पुत्र जगत्तुंग हुमा; उसके राचमल्ल हुमा जो जिनधर्मसमुद्र के लिये चन्द्रमा था।