Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 401
________________ ४५२ च........... ..................................................................... ****** जैन - शिलालेख संग्रह .......चक्रवर्त्तिगळ् एनिसि............... • पूजेयगळु ...... *T T ****** • हेगड' "हा.... सर्व्व.... ***** ............ 'तिरें यदा रा.............. ..... सादी... देन्दु " .....द माचण -[ जब कि ( अपनी विशाल पदवियोंके साथ ) विष्णुवर्द्धन इस जगत्पर राज्य कर रहे थे:-- मूलसंघ, देशियगण और पुस्तकगच्छके.....द्रसिद्धान्तदेव शिष्य मुनि नयकीर्त्ति और भानुकीर्त्तिके भक्त पेडे मल्लि नाथने जैन- बसदिका निर्माण किया और इसे धनसे पुष्ट किया । ] [EC, III, Mandya tl, n° 50] २९८ श्रवणबेलगोला - संस्कृत तथा कन्नड़ [ शक १०५३ = ११३१ ई०] 10008 (जै० शि० सं०, प्र० भा० ) २९९ पुरले - संस्कृत तथा कन्नड [ शक १०५४ वर्ष नन्दन = ११३२ ( ठीक १११२) ई०] [ पुरले ( बिदरे परगना ) में, गाँव के दक्षिण-पश्चिम वीर-सोमेश्वर मन्दिर के सामने पडे हुए एक पाषाणपर ] श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादा मोघलाञ्छनम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिन - शासनम् ॥ वस्ति समस्त-भुवनाश्रयं श्री - पृथ्वी वल्लभं महाराजाधिराज परमश्वर परम भट्टारकं सत्यांश्रय कुळ-तिलकं चालुक्याभरणं श्री त्रिभुवनमल्लदेवर विजय - राज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धिप्रवर्द्धमानमाचन्द्रार्कतारम्वरं सलु - तमिरे ।

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