Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 407
________________ * जैन - शिलालेख संग्रह कं ॥ गुण-निधिगे गङ्गदत्तं । गणुगिन पुत्रं विवेक निधि पुट्टि दया । प्रणियागि हरिश्चन्द्र- । प्रणुत-नृपेन्द्र धरित्रियोक् शोभिसिदम् ॥ मत्तमा-नृपोत्तमाङ्ग भरतनेम्ब सुतं पुट्टिदनात गङ्गदत्तनेम्व मगनागिन्तु गङ्गान्त्रय सलुत्तमिरे । कं ॥ हरिवंश -केतु नेमी- । श्वर तीर्थं वर्त्तित्तमिरे गङ्ग- कुञबर- भानु पुट्टिदं भासुर-तेजं विष्णुगुप्तम्व नरेन्द्रम् || व || आ-धराधिनाथ साम्राज्य-पदविय क्यूकोण्डु अहिच्छत्र-पुरदो सुखमि । व ॥ नेमि तीर्थकर परम-देवर निर्माण-कालदो केन्द्र-ध्वजमेम्व पूजेयं माडे देवेन्द्रनोसेदु । कं ॥ अनुपमदैरावतमं । मानोनुरागदोळे विष्णुगुप्ताङ्गित्तम् । जिन-पूजेयिन्दे मुक्तिय- | ननर्घ्यमं पडेगुमेन्टोडुळि दुदु पिरिडे ॥ व ॥ आ-विष्णुगुप्त-महाराज पृथ्वीमति महादेविगं भगदत्तं श्रीदत्तनेम्व तनयरागे । व ॥ भगदत्ताने कलिङ्ग-देशम कुडलातनु कलिङ्ग-देश मनाळ्डु कलिङ्ग - गङ्गनागि सुखढिनिरे । I (यू) इत्तलुदात्त-यशो-निधि | मत्त द्विपम समस्त राज्यमुम । श्रीदत्त-नृपाङ्गित्तं भू- । पोत्तमनेनिसि६ विष्णुगुप्त - नरेन्द्रम् || अन्तु श्रीदत्तनिन्दित्तलानेयुण्डिगे सलुत्तमिरे । प्रियवन्धु-वर्म्मनुदयिसि । नयदिन्दं सकळ धात्रिय पालिसिदम् । भय-लोभ-दुर्लभं ल- । क्ष्मी- युवति सुखाब्ज -पण्ड - मण्डित -हासम् ॥ अन्ता-प्रियबन्धु सुखदिं राज्य गेय्युत्तमिरे तत्-समयदोळु पार्श्व- भट्टार कर्गे केवळ्ज्ञानोत्पत्तियागे सौधर्मेन्द्रं वन्दु केवळ पूजेय माडे प्रिय

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