Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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जैन - शिलालेख संग्रह
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लडकीका लड़का हरिश्चन्द्र हुआ, उसका लडका भरत हुआ और उसका फिर गङ्गदत्त ।
गंग वशकी परम्परा इस प्रकार जारी थी, जब कि नेमीश्वरका तीर्थ चल रहा था, उस समय, राजा विष्णुगुप्तका जन्म हुआ । यह राजा भहिच्छत्र- पुरमें शान्ति से निवास कर रहा था, उसी समय नेमि तीर्थंकरका निर्वाण हुआ और उसने ऐन्द्रध्वज पूजा की, जिससे प्रसन्न होकर देवेन्द्रने उसे ऐरावत हाथी दिया ।
विष्णुगुप्त महाराज और पृथ्वीमति - महादेवीसे भगदत्त और श्रीदत्त नामके दो पुत्र हुए | पिताने भगदत्तको राज्य करने के लिये कलिंग-देश दे दिया और वह उसपर 'कलिंग गग ' नामसे राज्य करने लगा। दूसरी तरफ, उसने वह मत्त हाथी तथा शेष संपूर्ण राज्य राजा श्रीदत्तको दे दिया । इस प्रकार जब श्रीदत्तके समय से हाथीको मुकुटमें धारण किया गया था, -- प्रियबन्धुवने उत्पन्न होकर अपनी नीति से सारी पृथ्वीकी रक्षा की ।
जिस समय वह प्रियबन्धु शान्तिसे राज्य कर रहा था, उस समय पार्श्व-भट्टारक, (तीर्थंकर) को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ, जिसकी पूजा के लिये सौधर्मेन्द्रने आकर केवली पूजा की। इसी अवसरपर स्वयं प्रियबन्धुने भी आकर केवलज्ञानकी पूजा की । उसकी श्रद्धा से प्रसन्न होकर इन्द्रने पाँच आभरण (अलङ्कार ) उसे दिये और कहा, "अगर तुम्हारे वंशमें आगे कोई मिथ्यामतका माननेवाला उत्पन्न होगा, तो ये ( आभरण ) लुप्त हो जायेंगे ।" ऐसा कहकर, और अहिच्छत्रका 'विजयपुर' नाम रखकर इन्द्र चला गया ।
दूसरी ओर, पूर्ण चन्द्रमाके समान, गंग-वश बढ़ता ही चला गया और इस वंशमे राजा कम्पके पद्मनाभ नामका एक पुत्र उत्पन्न हुआ । पद्मनाभके, शासन- देवताकी कृपासे, दो पुत्र उत्पन्न हुए, जिनका नाम उसने राम और लक्ष्मण रखा ।
जब ये दोनों कुमार शान्तिसे रह रहे थे, उज्जयिनी - शासक महीपालने उनको जा घेरा और उनसे इन आभूषणोंको माँगा । पद्मनाभने देनेसे इन्कार कर दिया ।