Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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सौदत्तिका लेख
२५२ दिया था। शक म. ९९० में उक्त मितिको उन्होंने प्रधान योगका उत्सव किया और वे नुगभद्रामें स्वर्गवासको सिधार गये। __ इनका प्येष्ठ पुत्र सोमेश्वर था। उसका दूसरा नाम 'भुवनेंकमल' था ।
वह जब राज्य कर रहा था___ तत्पादपद्मोपजीवी लक्ष्मण था। उसकी बहुत-सी प्रगसा । जिस समय यह बनवसे १२००० पर राज्य कर रहा था
उसका टण्डनाथ शान्तिनाथ था। उसकी प्रशसा । बलिनगर, या वलिग्राम (बलगाम्बे )में सभी धमाके मन्दिरीके होनेकी बात । राजा लक्ष्मणने भी वहाँ मन्दिर (जिन भगवान्का) बनवाया।
मूल संघ, टेलिग गण और कोण्डकुन्दान्वयके वर्द्धमान मुनीन्द्र । मुनिचन्द्रदेव सिद्धान्त । इन दोनोंकी प्रशसा । इन्होंने भी जैनमन्दिर वनवाये। महामण्डलेश्वर लक्ष्मरसने, मल्लिकामोद शान्तिनाथ-मन्दिरके लिये, (उक्त मिनिको) देमिग-गण तालकोलान्वयक माधनन्दि-मट्टारको कुछ जमीन दानमें दी। दामोजने इस लेखको उत्कीर्ण किया।
[EC, VIL, shukurpur tl., n° 136 ]
२०५ सौदत्ति-कन्नड-भन्न
[काल लुप्त'] भद्रमन्तु जिनशासनाय ॥ श्रीमन्परमगम्भीरस्याहादामोवलाच्छनं [] जीयात्रैलोक्यनायस्य आसनं जिनशासनं [1] खन्ति समस्तभुवनाश्रयं श्रीपृथ्वीवल्लभमहाराजाधिराज-परमेश्वर-परमभट्टारक सल्लाश्रयकुतिलकं चालुक्याभरणं श्रीमद्भवनकमल्लदेवर विजयराज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धिप्रवर्द्धमानमाचन्द्रावतार सनुत्तमिरे [0] तपादपद्मोपजीवि [] समविगतपच-महा-शब्द-महामण्डलेश्वर लत्तलूप्रवरेश्वर त्रिवळीतूर्य्य निर्योपणं वैरिकुळविल्यान्तकविभीषणं सिन्दूरलाञ्छनं समस्तविद्याविरिंचनं सुवर्णगस्डध्वजं विदग्धमुग्धाङ्गनामकरध्वजं रकुळवनज