Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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जैन-शिलालेख संग्रह भास सूनृतवाग्विळासनवनीनाथोत्तमं कत्तमं ।। आ विभुविन वधु पद्मलदेवी कळारूपविभवजिनमतदोब्वाग्देवी रतिदेवी लक्ष्मीदेवी शचीदेवियेनिसि मिगे सोगयिसुवळ् ।। श्रीपति ना विष्णुः पृथुवीपति येने लक्ष्मीदेवनोगेदु वसुदेवोपमकत्तमविभुगं श्रीपालदेवियेम्ब मुतदेवकिग ॥ प्रकटिततेजनन्वयसरोजसमूहविकासि(शि) सज्जनप्रकररथाग सम्मटकर (२) नियताभ्युदयप्रशोभिताधिकनिजमण्डळ जितकलंक पवित्रचरित्रनागि चन्द्रिकेगधिनाथनादनिदु विस्मयन्त प्रभुलक्ष्मीभूभुज ॥ श्रीयुवतीशहेमगरुडध्वजमडितमण्डलेश्वरनारायणलक्ष्मणंगे तनुजम्भुजदन्ते धरोरुभारधौरेयरनून दानजयधर्मधरचिभुकार्तवीर्यलक्ष्मीयुतमल्लिकार्जुन महीश्वररादरतक्यविक्रमर् ॥ परचक्र निजविक्रमक्क्रगिदु तेजःच ( जश्न ) क्रम वि१ कोवर चक्रक्केणे र्याप्पनन्तिरेविनं दिक्चक्रम व्यापिसुत्तिरे
यह लेख भी एक टुकडा है और उस पापाण-तलसे लिया गया है जो मि० फ्लीटको उस मन्दिरके आँगनमें आधा गड़ा हुआ मिला था जिसमें कि पूर्वके दो लेख (नं १३० और १६०) मिले थे। इसमे ननसे ले कर कार्तवीर्य द्वितीय तककी वशावली मिलती है । का० वि० को चालुक्य राजा भुवनैकमलदेव या सोमेश्वर द्वितीय बतलाया गया है। इसका काल सर डब्ल्यू इलियट (Sir W Ellhot) ने शक ९९१ १ (१०६९७० ई.) से लेकर शक ९९८ ( १०७६-७ ई.) तक बताया है । इसमें उसके पुत्र सेन द्वितीयका नाम भी आता है, लेकिन लेखकी वंशावलिके भागका मुख्य उद्देश्य स्पष्टत ७ वी पक्तिमें है जिसमे कार्तवीर्यकी सन्तान-परम्पराका उल्लेख है । यही कार्तवीर्य उस समय अपने कुटुम्बका प्रतिनिधि था, उसका पुत्र सेन नहीं, क्योकि वह उस समय निरा बच्चा रहा होगा । दानगत लेखका भाग लुप्त है। ] [JB, X, p 172, 3, p 213-216, t, p217-219, tr (ins n° 4)]