Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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जैन-शिलालेख संग्रह तडेयदे मुक्तियं पडेवेनेन्दु विचारिसि वन्धु-वर्गव...।
विडिसि समाधिय पडेदुदेल्लियुमच्चरि जकियब्बेय ॥ कस्तूरि-भट्टारगर्गे अवर श्रावकि चन्दियब्वे-गावुण्डि""यर . मत्रकि जकियब्बे सन्यसन गेय्दु मुडिपिदळ ॥ आकेय गण्ड परमश्रावक एडय्य मङ्गळम्
[जिनशासनके लिये कल्याण-कामना । स्वस्ति । भयके साथ यह सुनकर कि दाय-तिगमति परलोककी इच्छासे मृत्युको प्राप्त हुई-तथा इस बातको न सहन कर, अपने सम्बन्धियोंकी सम्मति लेकर जक्कियन्वेने, जो चन्दियचे-गावुण्डिकी 'मन्त्रकि' और कस्तूरी भद्दारकी 'श्राविका' थी, संन्यसन विधि की और स्वर्गगत हुई । उसका पति श्रावक एडय्य था।]
___ [EC, IX, Coorg tl., n° 31]
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नल्लूर्-कन्नड़ [विना काल-निर्देशका, लगभग १०५० ई० १ (लई राइस)] [नल्लर ( हत्तुगट्ठनाइ ) मे, तीतरमाड मादस्यके घरके पश्चिमकी तरफ
हितल्मे] ..........."कोडगाळ 'ए मग........दिळे आम्दडे मेन्दु यति-वर ल्ल सादरदि वीकि पा [दादोळेरगि ताळिदनीसुर-कीर्ति भद्रमस्तु जिन-शासनाय श्रीम मदुवगनाड् दोर किविरियव्यङ्गळ् चाङ्गलद वसदियोळ् पन्नेरड नोन्तु मुडिपि नवर मक्कळ् वाकियु बुकिय निरिसिदर
[...जर कोटगालुवका पुन शासन कर रहा था, वीळिय-सेट्टिने देवोके यशमा लाभ किया। जिनशासनका कल्याण हो ।
मदुवगनाड्का स्वामी, किविरिके भय्यने १२ दिन तक चागल बसदिमें मत रक्खा और स्वर्गगत हुआ। उसके पुत्र बाकि और बुकिने इसकी स्थापना की।
[FC, IX, Coorg th, n° 30]