Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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हुम्मचका लेख' (नोक्कय्य-सेटिने ) अपना गाँव कुकडवळ्ळि भी दानमें दे दिया, और इसको (उक्त) सब करोसे मुक्त कर दिया, और अपने सह-धर्मी सकलचन्द्र-पण्डितदेवको सौंप दिया।
शापात्मक और वे ही अन्तिम श्लोक ।
राजा वीर शान्तर और 'सम्यक्त्व वारासि' नामसे प्रसिद्ध पट्टण-स्वामि नोककी प्रशंसा में श्लोक । माहुरमें प्रतिमाको रतोंसे मढ़ दिया और उसके पास सोना, चादी, मूगा ( Conal), रत्नो और पञ्चधातुकी प्रतिमायें थीं। शान्तगेरे, मोळकरे, पट्टण-स्वामिगेरे और कुक्कुडवळ्ळिके तळेविण्डेगेरेये सब तालाब उसने बनवाये थे। और सौ सुवर्ण गद्याण देकरके उसने उगुरे नदीका सौळंगके पागिमगल तालाबमे प्रवेश कराया। __ सकलचन्द्र-पण्डित-देवके गृहस्थ-शिष्य मल्लिनाथने इसे लिखा, उसने गुडिवयरका दान किया । पट्टण-स्वामिक गुरु दिवाकरनन्दि-सिद्धान्तरत्नाकर देव और सर्वज्ञ-पदलाल्छित वीर-शान्तर-देवकी प्रशंसा]
[EC, VIII, Nagar tl, n°58]
हुम्मच, कन्नड
शक ५८५-१०६२ ई० [पार्श्वनाथबस्तिमें मुखमण्डपके खम्भोपर ]
(दक्षिण-स्तम्भ) (पूर्व-मुख) ""पृथुवी-बल्लभ महाराजाधिराज परमेश्वर परम-भट्टारक सत्याश्रय-कुळ-तिळक चालुक्याभरण श्रीमत् त्रैलोक्यमल्ल-देवर चतु
समुद्र-पर्यन्त पृथ्वी राज्यानुष्ठानदिनिरे ॥ तत्पादपद्मोपजीवि ॥ समधिगत-पञ्च-महा-शब्द महा-मण्डलेश्वरनुत्तर-मधुरावीश्वर पट्टि-पोम्बुर्च-पुरवरेश्वर महोग्र-वश-ललाम पद्मावती-लब्ध-वर-प्रसादासादित-विपुल-तुलापुरुष-महादान-हिरण्यगर्भ-त्रयाधिक-दान वानर-ध्वज-विराजित-राजमानमुंगराज-लाञ्छन-विराजितान्योत्पन्न बहु-कलाकीर्ण सान्तरादित्य सक
शि० १६