Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
View full book text
________________
घलगाम्बेका लेख
२४२ कुळ माडि राज्य गेग्युत्तिन्दु स(शोक-वर्ष ९८७ नेय विश्वावसुसंवत्सरं प्रवर्तिसुत्तमिरे निजान्वय-राजधानि-पोम्बुर्चदोळ् भुजवळ-गान्तर-जिनालयके माध-मामद सुद्ध-पञ्चमी-सोमवारमुमुत्तरायण-संक्रमणदन्दु तम्म गुरुगळ कनकणन्दि-देवगर्गे धारा-पूर्वक माडि हरवरिय बिट्टम् । (यहाँ सीमाओंकी विस्तृत चर्चा भाती है)। • जिनशासनके कल्याणकी कामना । स्वस्ति । जब, (उन्हीं चालुक्य पदो सहित) चतुस्समुद्रपर्यन्त गृथ्वीके राज्यपर त्रैलोक्यमलदेव शासन कर रहे थे__तरपादपद्मोपजीवी,-जिस समय, (उन शान्तरके पदों सहित जो कि शि० ले० नं० १९७ में दिग्वाये गये हैं), लोक्यमल भुजबल-शान्तरटेव, शान्तळिगे हजारको उपद्रयों और कष्टोंसे मुक्तकर शासन कर रहे थे,-(उक्त मितिको), अपनी राजधानी पोम्बुम्र में भुजबल-शान्तर जिनालयके लिये अपने गुरु कनकनन्दि-देवको हरवरिका दान किया था. इसकी सीमायें । यसदिका ऐसा शासन (लेस) है।
[EC, VIII, Nagar ti, no 59)
२०४ बलगाम्बे-संस्कृत तथा कन्नड ।
[शक ९९०-१०६८ ई.] [यलगाग्वेमे, यसगियर-होण्डके पासके भागनमे पापाण-खण्डोपर]
श्रीमत्परमगभीरस्याद्वादामोवलाञ्छनम् ।
जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासन जिनशासनम् ॥ खस्ति समस्त-भुवनाश्रय श्री-पृथ्वी-बल्लभ महाराजाधिराज परमेश्वर ... भट्टारक सत्याश्रय-कुल-तिलक चालक्याभरण श्रीमत्त्रैलोक्यमल्लनाहवम " "सुख-संकथा-विनोददि राज्य गेय्युत्तमिरेयिरे ॥
वृत्त । मलेपर म्माराम्परिल्लक्रमदितराटप्परिल्लुर्कि दर्छन् । ढले वाबुद्वत्तरिल्लोट्टजि-वेरसु कुरुम्बर्तरुम्बिपरिल्ले ।