Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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मुल्लूरका लेख
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संघढरुङ्गळान्वयद गुणसेन -पण्डित - देवर्गे माडिसि धारा- पूर्व्वकं कोहरु || ( वही अन्तिम श्लोक ) ।
[ धर्म-सेहिके द्वारा लिखित |
स्वस्ति । ( उक्त मितिको ), राजेन्द्र कोङ्गावने, अपने पिता द्वारा निर्मित बसढिके लिये हेरुवनहळ्ळि, अरकनहळळ, तथा निदुत गोडलुमें तीन खण्डगका दान दिया, और इसी तरह दूसरे गॉवोमे ( जिनके नाम दिये हैं)।
और राजाधिराज कोङ्गाळ्वकी माँ पोचव्वरसिने अपने गुरु द्वविळ गण, नन्दि-संघ, तथा मरुळान्वयके गुणसेन पण्डित - देवकी प्रतिमा बनवाकर जलधारापूर्वक इसे समर्पित की। शाप । ]
[ EC, IX, Coorg tl, n° 35 ] १९०
मुल्लूर - संस्कृत तथा कन्नड
[ विना काल-निर्देशका, पर लगभग १०५८ ई० का ] मुल्लूरमे, पार्श्वनाथ बस्तिके नीचे देहली में ] स्वस्ति श्री राजेन्द्र चोळ कोङ्गावन पुत्र श्री - कोङ्गाळ्व.. वास-स्थानम तम्म गुरुगळ् तिबुळ-गणदरुङ्गान्वयद नन्दि-सध्द गुणसेन - पण्डित - देवर्गे धारा- पूर्वक कोट्ट मङ्गळ महा श्री श्री ।
[ स्वस्ति । राजेन्द्र चोळ- कोङ्गावके पुत्र रा कोद्गाकवने तिबुळ-गण, अरुलान्वय और नन्दि-संघके अपने गुरु गुणसेन पण्डित - देवको रहनेके स्थानके रूपमें ... दिया । ]
[ EC, IX, Coorg tl, n° 38] १९१
मुल्लूर - कन्नड़
[ विना काल-निर्देशका, पर लगभग १०५० ई० ]
[ उसी बस्तिके प्राङ्गणमें एक पापाणपर ]
स्वस्ति श्री गुणसेन -पण्डित - देवर् अगळिसिद नागवानि नकरद धर्म्म