Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
View full book text
________________
२००
जैन - शिलालेख संग्रह
और जिस समय सत्यवाक्य - कोङ्गिणिव - धर्म - महाराजाधिराज राचमल्ल पेर्मनडिका, जो कोळाळपुरके ईश्वर तथा नन्दगिरिके नाथ थे, राज्य था, उस समय श्रीमत् - रक्कम वेहोरेगरेपर राज्य कर रहा था । उससे श्री-वेगोलके निवासी श्रीमत् अनन्तवीर्यश्यने पे[ र् ]ग्गदूर तथा नयी खाई प्राप्त की । अनन्तवीर्यय्य गोणसेन पण्डित भट्टारकके शिष्य थे और ये वीरसेन - सिद्धान्त - देवके शिष्य थे। यह लेख चन्दनन्दियय्यका लिखा हुआ है । ] n° 41
1
[ EC, I, Coorg ins,
१५५
श्रवणबेलगोला - कन्नड [ विना काल निर्देशका ] १५६ श्रवण- वेलगोला - कन्नड़ तथा तामिल ।
[ विना काल निर्देशका ] १५७ श्रवण-वेलगोला -- कन्नड [ विना काल-निर्देशका ]
[ देखो जैन शिलालेखसग्रह, भाग १ ]
१५८
विदरे - कन्नड़ [ शक ९०१ =९७९ ई० ]
[ बिदरे (चेळूर परगना ) मे, तालाब के व्यर्थ पड़े हुए बाँधपरके एक पाषाणपर ]
खस्ति स (श) क - वर्ष ९०१ नेय प्रमातिक-संवत्सरद कार्त्तिक-मासदोळ् त्रिलोकचन्द्र भटारर शिष्य रविचन्द्र भटारह सन्यसन गेय्दु मुडिपिदर् कोण्डकुन्दान्वयद देसिंग- गणद भानुकीर्तिभटारर् परोक्षविनय माडिसिद