Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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जैन - शिलालेख संग्रह
१२ प्पोरु तण्डारकोण्ड कोप्परकेशरिपन्मरान उडैयार श्रीराजेन्द्रचोळदेवरकु याण्डु १२ आवदु जयङ्गोण्डचोळमण्डलत्तु पङ्गळनाट्टु नडुविल्
१३ वगैमुगैना टुप्पलिच्चन्दं वैगवूर तिरुमलै श्रीकुन्दवैजिनाल यत्तु देवकु प्पेरुंवाणपाडिक्करैवळिमल्लियूर इरुक्कु -
व्या
१४ पारि नन्नप्पयन् मणवाट्टि चामुण्डप्पै वैत्त तिरुनन्दाविळ - क्कु [1] ओन्रिनुक्कुक्का इरुपदु तिरुवमुदुक्कु चैत्त काशु पत्तुम् [ ॥ ]
[ यह अभिलेख कोपरकेसरिवर्मन्, उर्फ उडैयार राजेन्द्र चोल- देवके बारहवें वर्षका है । इसके आरम्भमे उन सभी देशोके नाम दिये हुए है जिनको इस राजाने जीता था। उनमे हमें ७ || लाख भूमिकरवाले 'इरहपाडि' का पता चलता है जिसे राजेन्द्रचोलने जयसिंहसे लिया था । इस देशको उन्होंने अपने राज्यके ७ वें और १० वे वर्षके मध्य में जीता होगा । इस अभिलेखका जयसिंह 'पश्चिमी चालुक्य राजा जयसिंह तृतीय' (लगभग शक ९४० से लगभग ९६४ तक ) के सिवाय और कोई नहीं हो सकता । जब कि राजेन्द्र चोल और जयसिंह तृतीय दोनों एक दूसरे को जीती ढीग मारते हैं, तब हमें यह मान लेना चाहिये कि या तो सफलता दोनोको क्रमशः मिली होगी, या चिर विजय किसीको भी नहीं मिली होगी ।
दूसरे दो देश, जिन्हें राजेन्द्र-चोलका जीता हुआ कहा जाता है, 'इबैतु'रैनाडु' और 'वनवास' है । पहला 'ईडतोरे' देश है, जोकि मैसूर जिलेके एक तालुकेका हेड क्वार्टर है, दूसरा बम्बई प्रान्तके 'नॉर्थ केनारा' जिलेका 'बनवासि' है ।