Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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लक्ष्मेश्वरका लेख
१०३ पश्चिमी चालुक्योका शिलालेख है । इसमे पो (पु) लिकेगीवल्लभ, अर्थात् पुलिकेशी प्रथमसे लेकर विजयादित्य सत्याश्रय तककी वंशावली दी हुई है तथा यह भी उल्लेखित है कि अपने राज्यके चौतीसवें वर्षमें जब कि शक संवत्के ६५१ वर्ष व्यतीत हो चुके थे फाल्गुनकी पूर्णिमाके दिन, जब कि उसका विजय स्कन्धावार रक्तपुर नगरमे था, पुलिकर नगरकी दक्षिण सीमापर बसे हुए कर्दम गॉवका दान अपने पिताके पुरोहित उदयदेव पण्डितको, जिन्हें 'निरवद्यपण्डित' भी कहते थे, दिया । ये श्रीपूज्यपादके शिष्य थे तथा मूलसंघ अन्वयकी देवगण शाखाके थे । यह दान पुलिकर नगरमे शस-जिनेन्द्र के मन्दिरके हितार्थ दिया गया था। कालनिर्देश पक्ति ४२-४४ में यो दिया हुआ है ---एकपञ्चाशदुत्तरषदछतेपु शकवर्षेवतीतेषु प्रवर्त्तमान-विजयराज्यसंवत्सरे चतुस्त्रिशे वर्तमाने श्री-रकपुरमधिवसति विजयस्कन्धावारे फाल्गुनमासे पौर्णमास्याम् । वार (दिन ) इसमे नहीं दिया हुआ है।]
[इं० ए०, ७, पृ० ११२, नं० ३९ (द्वितीय भाग)]
लक्ष्मेश्वर-सस्कृत।
[शक ६५६-७३४ ई.] खस्ति ।
जयत्याविःकृतं विष्णो राह क्षोभितार्णवं ।
दक्षिणोन्नतदंष्ट्राग्रविश्रान्तभुवन वपुः ॥ श्रीमता सकलभुवनसस्तूयमानमानव्यसगोत्राणा हारीति-पुत्राणा सप्तलोकमातृभिः सप्तमातृभिरभिवर्द्धिताना कार्तिकेयपरिरक्षणप्राप्तकल्याणपरम्पराणा भगवन्नारायणप्रसादसमासादितवराहलाञ्छनेक्षणवशीकृताशेपमहीभृता चालुक्यानां कुलमलकरिप्णोरश्वमेधावभृथस्नानपवित्रीकृतगात्रस्य श्रीपोलिकेशीवल्लभमहाराजस्य - प्रियसूनुः श्रीकीतिवर्मपृथ्वीवल्लभमहाराजस्तस्यात्मजस्य सत्याश्रयश्रीपृथ्वीवल्लभमहा