Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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जैन-शिलालेख संग्रह ५ स्यम् स ९३३ वैशाखो सुदि १४ । [पथारिसे दक्षिणकी ओर करीव ३ मीलपर ज्ञाननाथ पर्वतकी तलहटीमें एक झीलके किनारे बारो या बडनगरके ध्वसावगेप सुन्दर रीतिसे अवस्थित है। वहॉपर एक 'गडर-मर' नामका मन्दिर है, जो कि किसी गडरियेका बनवाया हुआ था।
इस गडरमर मन्दिरकी पश्चिम दिशामे छोटे-छोटे जैन मन्दिरोका एक समूह है । उसके चतुष्कोण प्राङ्गणके बाहर एक चतुष्कोण छोटे पत्थरपर उक्त शिलालेख मिला था।
[A Cunningham, Reports, X, p 74]
१३० सौदत्ति-संस्कृत तथा कन्नड ।
[शक ७९७-८७५ ई.]
द्वादशप्रामाधिष्ठानस्य सुगन्धवर्तिसम( सम्ब )न्धिनि || प्रामे मूलगुन्दाख्ये । सीवटे पड् निवर्त्तन । देवस्य (ख) चि(गु)रवे दत्त । नमश्य (स्य ) कन्नभूभुजा ॥ तस्य दक्षिणे भागे । तिन्तिणीवृक्षयोईयो. । मध्ये या स्थिता भूमिद (ई) त्ता श्रीकन्नभूभुजा । सुगन्धवतिय सीमेयिन्द पदु (डु) वल् पिरियकोलल् मत्तर ६ ॥
श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलाछन [] जीयात्रे( त्रैलोक्यनाथस्य शासन जिनशासन ॥ श्रीमन्म्मैळापतीर्थस्य गणे कारेयनामनि [1] बभूवोग्रतपोयुक्त: मूलभट्टारको गणी ॥ तच्छिष्यो गुणवान्सरिः
दुर्भाग्यसे यह लेख दोनों ओर (प्रारम्भ और अन्तमे) अधूरा ही है, इसलिये कनिंघम साहव इवर-उधर कुछ शब्दोंकी पूर्तिके बजाय इसके पूर्णरुपस समझनेमे असफल रहे है। अतएव इसका विशेष साराश भी नहीं दिया जा सका।