Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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सून्दीका लेख
१७५ अमोघवर्पकी • कन्या अव्वलवासे विवाह किया )
कोमरखेडङ्ग-एरेगङ्ग-नीतिमार्ग-कोगुणिवर्मन् ( एरेयप्पके, या द्वारा, पट्टबन्धसे उसका ललाट शोभित था;
और उसने जन्तेप्यरुपे रुमे पल्लवोको हराया था)
वीरवेडङ्ग-नरसिंघ-सत्यवाक्य-कोझुणिवर्मन्
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कच्छेयगङ्ग-राजमल्ल-नीतिमार्ग-कोड़ णिवर्मन्
जयदुत्तरंग-गगगागेय-गगनारायण-नन्नियगगबूतुग-सत्यनीतिवाक्य-कोङ्गणिवर्मन्
(९३८ ई०) (इसने डहाळ देशके त्रिपुरीमे, बहेगकी पुत्रीसे विवाह किया था, बहेगकी मृत्युपर कृष्णके लिये राज्य प्राप्त किया, लल्लेय (1) के पलेसे इसको निकाला; अळचपुरके कक्कराजको, वनवासीके विज-दन्तिवर्मनको, राजवर्माको, तुलगिरिके दामरिको, तथा नागवर्माको भय उत्पन्न किया; राजादित्यको जीता, तक्षापुरीको घेरा, और नाळकोटेके पहाडी किलेको जला डाला । इसकी पत्नी दीवळाम्बा थी।)
१४३ मदनूर-(जिला-नेल्लोर) संस्कृत । शक ८६७=९४५ ई० सन्
प्रथम पत्र। १ भद्रं स्यात्रिजगन्नुताय सतत श्रीमजिनेन्द्रप्रभोरुद्दामाततशासन[]