Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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जैन - शिलालेख संग्रह
बदणेगुप्पे नामका सुन्दर गाँव दानमें प्राप्तकर भकालवर्ष पृथ्वी वल्लभ के मन्त्रीने शकसंवत्सर ३८८ के माघ महीनेकी शुक्ल पञ्चमी, सोमवारको स्वाति नक्षत्र के समय इसे भेट किया । यह गाँव पूनाडु छः हजारके एडेना सत्तर के मध्यमे अवस्थित है । साथमे १२ 'कण्डुग' प्रत्येक छ. भाश्रित गावोमेसे, तथा पोगरिगेले और पिरिकेरेंमे से भी दिया । ]
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हल्सी (जिला बेलगाँव ) – संस्कृत | [ ३० पाँचवी शताब्दिका ( फ्लीट ) ]
प्रथम पत्र ।
[१] नमः ॥ जयति भगवाञ्जिनेन्द्रो गुणरुन्द्र' प्र[थि]त [ परम ] कारुणिक
[२] त्रैलोक्याश्वासकरी दयापताकोच्छ्रिता यस्य ॥ परम[३] श्रीविजयपलाशिकाया प्रजासाधारणा [शा] नाम् ॥ दूसरा पत्र, पहली ओर ।
[ ४ ] कदम्वाना युवराज श्रीकाकुस्थवर्म्मा स्ववैजयिके अशीतितमे [५] सवत्सरे भगवतामर्हताम् सर्व्वभूतगरण्यानाम् त्रैलोक्यनिस्तार
[ ६ ] काणाम् खेटग्रामे बढोत्ररक्षेत्र [ म्] श्रुतकीर्तिसेनापतये ॥ दूसरा पत्र, दूसरी ओर 1
[७] आत्मनस्तारणार्थ दत्तवा [न्] [II] तद्यो [हि ] न (ना) स्ति वश्यः [प] रवश्यो वा
[८] स पञ्चमहापातकसयुक्तो भवती (ति) [] यो भिरक्षती (ति) तस्य सत्य (सर्व्व, या सत्य सर्व्वे ) गु