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20 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन
का कारण है। अविद्या से ही बंध होता है। प्रमाद कर्म-बन्ध में सहायक
होता है। 16. इस आत्मा की अपने कल्याण की दृष्टि नष्ट हो गई है और वह स्वार्थ के
पीछे पागल हो गया है। पुत्रों! निष्काम और निःस्वार्थ होकर सुखलेश की
उपेक्षा करके कर्ममूढ़ता और अनन्त दुःख ग्रस्तता को नष्ट करो।। 17. नेत्रों के अभाव में जैसे अन्धा कुपथ पर जा चढ़ता है, उसी प्रकार जीव
कर्मान्ध होकर कुमार्ग का अनुसरण कर रहा है। कुबुद्धि होने के कारण ही
वह सच्चे धर्म पर श्रद्धा नहीं करता। 18. हे पुत्रों ! मेरा शरीर मेरा नहीं है, यह तो आत्मा के विभाव का दुप्फल है।
मेरा अपना तो आत्म स्वभाव ही है। वहीं मेरा सच्चा धर्म है। मैंने उस
विभाव रूप अधर्म को दूर कर दिया, अतः मुझे लोग श्रेष्ठ आर्य कहते हैं। 19. अग्निहोत्र में वह कुछ नहीं है, जो आत्मयज्ञ में है। 20. मैं उसे ही यज्ञ मानता हूँ, जो सतोगुण से युक्त, शम, दम. सत्य, अनुग्रह,
तप, तितिक्षा और अनुभव से सम्पन्न होता है। इसी मार्ग से अनन्त आत्माएँ
परमात्म पद प्राप्त कर गई है। यही श्रेष्ठ मार्ग है। 21. स्थावर और जंगम जीवों पर सदा अभय दृष्टि रखो, यही सच्चा श्रेष्ठ मार्ग
है और मोह नाश का कारण है। मुक्ति प्राप्ति के लिए प्रयत्न करो, यही
सर्वोच्च ध्येय है। इसी सिद्धि से अनन्त सुख प्राप्त होता है।
भगवान् का यही उपदेश सुनकर उनके पुत्रों ने संसार त्याग दिया। कर्मकाण्ड त्याग कर उन्होंने परमहंस धर्म (आत्म धर्म) की पद्धति का अनुसरण किया।"
भागवत में भगवान् ऋषभदेव की तपस्या का बहुत ही रोमांचकारी वर्णन किया गया है। उपसर्गों, परीषहों और संकटों को पार करते हुए तथा वनवास के समस्त दुःखों को सहन करते हुए भगवान अवधूत वेश में विचरने लगे। उनका मन अविखण्डित और प्रशान्त था। वे मानापमान की चिन्ता न करके घूमते रहते थे।
___ भगवान् ऋषभदेव के भगवतोक्त जीवन की जैनागमों और जैन पुराणों से पूरी तरह तुलना की जा सकती है। भगवान ऋषभदेव द्वारा अपने पुत्रों को उपदेश देने का प्रसंग अंगशास्त्र में भी है। सूत्रकृतांग का द्वितीय अध्ययन (प्रथमश्रुतस्कंध) इसी उपदेश से भरा है। वस्तुतः भागवतकार ने श्री ऋषभदेव के जीवन और धर्म को विशुद्ध रूप में उपस्थित करने का प्रयत्न किया है। कहीं भी उन्हें यज्ञ समर्थक या वेदानयायी प्रदर्शित नहीं किया गया है।
__ वैदिक धर्म के चौबीस अवतारों में भगवान् ऋषभदेव आठवें अवतार स्वीकार किए गए हैं, लेकिन उनका जीवन किसी भी अन्य वैदिक अवतार से मेल नहीं खाता है। वह अनूठा है।