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[सोलह]
जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३ २.२. आक्षेप का निराकरण
३०८ २.३. 'क्षयोपशमनिमित्तः' रखने का प्रयोजन
३१० २.४. 'यथोक्तनिमित्तः' को हटाने का आरोप मिथ्या
३११ २.५. 'इन्द्रियकषायाव्रतक्रिया:---'
३११ २.६. 'इन्द्रसामानिकत्रायस्त्रिंश---'
३१४ २.७. आक्षेप का निराकरण
३१५ २.८. 'सारस्वत्यादित्य---' २.९. सम्यग्दृष्टि और सम्यग्दर्शनी
३१८ २.१०. 'मतिः स्मृतिः---' २.११. शब्दादि नय
३१९ २.१२. चरमदेहोत्तमपुरुष
३१९ २.१३. प्राणापान
३२० २.१४. घनाम्बुवाताकाशप्रतिष्ठाः
३२० २.१५. 'औदारिकवैक्रिय---'
३२१ २.१६. महाव्रत संवर के हेतु
३२१ २.१७. 'कालश्चेत्येके'
३२२ २.१८. 'बादरसाम्पराये सर्वे' ३. सूत्र-भाष्य-एककर्तृत्वविरोधी अन्य हेतु
३२४ ३.१. कर्मणो योग्यान्
३२४ ३.२. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र की सटिप्पण प्रति
३२४ ३.३. सटिप्पण प्रति में कुछ अधिक सूत्र
३२६ ३.४. भाष्य के पूर्व भी कुछ श्वेताम्बरटीकाएँ रचित ४. एककर्तृत्व के पक्षधर हेतुओं की हेत्वाभासता के प्रमाण४.१. स्वोपज्ञता सर्वमान्य नहीं है
३२८ ४.२. उत्तमपुरुष की क्रिया सूत्रकार-भाष्यकार के एकत्व का प्रमाण नहीं
३३१ ४.३. सूत्र और भाष्य में विरोध एवं विसंगतियाँ ५. एककर्तृत्वविरोधी बाह्य हेतु
३३६ द्वितीय प्रकरण-सर्वार्थसिद्धि की भाष्यपूर्वता के प्रमाण
३३८ १. सर्वार्थसिद्धि और भाष्य में वाक्यगत साम्य
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