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हिन्दी - जैनसाहित्यका इतिहास ।
अथवा
जैनलेखकों और कवियोंद्वारा हिन्दी साहित्यकी सेवा । [ गताङ्कसे आगे । ]
जैनहितैषी -
पाँडे जिनदास – इनके बा 'जम्बूचरित्र और ज्ञान सूर्योदय ये दो पद्य - ग्रन्थ हैं। कुछ फुटकरपद भी हैं। जम्बूचरित्रकों इन्होंने संवत् १६४२ में बनाया है ।
९ पाँड़े हेमराज । इनका समय सत्रहवीं शताब्दीका चतुर्थपाद और अठारहवींका प्रथम पाद है । पण्डित रूपचन्दजीके ये शिष्य थे । पंचास्तिकायके अन्त में लिखा है- “ यह श्रीरूपचन्दगुरुके प्रसादथी पाँड़े श्रीहेमराजने अपनी बुद्धि माफिक लिखत कीना । " इनके बनाये हुए तीन ग्रन्थ उपलब्ध हैं- प्रवचनसार टीका, पंचास्तिकाय टीका और भाषा भक्तामर । प्रवचनसार टीकाको इन्होंने संवत् १७०९ समाप्त किया था:
सत्रह सय नव उत्तरै, माघ मास सितपाख । पंचमि आदितवारकौं,
पूरन कीनी भाख ॥
पंचास्तिकाय टीका पीछे बनाई गई है। ये दोनों ग्रन्थ गयमें है और इनमें शुद्ध अध्यामका वर्णन है । जैनसमाजमें ये ग्रन्थ बड़े ही महत्त्वके समझे जाते हैं । इनकी भाषा सरल और स्पष्ट है । उदाहरण
" जो जीव मुनि हुवा चाहै है सो प्रथम ही कुटंब लोककौं पूछि आपकौं छुटावै है बंधु लोगनिसौं इसि प्रकार कहै है - अहो इसि जनके
रके तुम भाइबंध हौ इसि जनका आत्मा तुम्हास नाहीं यौ तुम निश्चय करि जानौ । "
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[ भाग १३
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ऐसें नाहीं कि कोई काल द्रव्य परिणाम विना होहि जातैं परिणाम विना द्रव्य गदहेके सींग समान है जैसैं गोरसके परिणाम दूध दही घृत तक इत्यादिक अनेक हैं इनि अपने परिणामनि विना गोरस जुदा न पाइए जहाँजु परिणाम नाहीं तहाँ गोरसकी सत्ता नाहीं तैसें ही परिणाम विना द्रव्यकी सत्ता नाहीं । "
चौथा ग्रन्थ ' भाषा भक्तामर ' है । यह मानतुंगसूरिके सुप्रसिद्ध स्तोत्र ' भक्तामर ' का हिन्दी पद्यानुवाद है । अनुवाद सुन्दर हैं और इसका खूब ही प्रचार है। इससे मालूम होता है कि हेमराजजी कवि भी अच्छे थे। एक उदाहरणः-
प्रलय पवन करि उठी आगि जो तास पटंतर । वमै फुलिंग शिखा उतंग परजलै निरंतर ॥ जगत समस्त निगल्ल
भस्मकर हैगी मानो । तड़तड़ाट व अनल,
जोर चहुंदिशा उठानो ॥ सो इक छिनमैं उपशमै, नाम-नीर तुम लेत । होइ सरोवर परिनमै,
विकसित कमल समेत ॥ ४१ ॥ इस अनुवाद में एक दोष यह है कि इसके लिए जो चौपाई छन्द चुना गया है, वह मूल शार्दूलविक्रीडित छन्दोंका भाव प्रकट करनेमें कहीं कहीं असमर्थ हो गया है और इस कारण कहीं कहीं क्लिष्टता आ गई है । छप्पय और नाराच छन्दोंमें यह बात नहीं है । इन छन्दोंमें जो अनुवाद है वह सरल है ।
गोम्मटसार और नयचक्रकी वचनिका (सं० १७२४) भी इनकी बनाई हुई है । ' चौरासी बोल " नामकी एक छन्दोबद्ध रचना भी इनकी है।
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