________________
जैनहितैषी
[भाग १३ ष्टितरंगिणी ग्रन्थ बहुत बड़ा है। उसकी ग्रन्थसं- १९ थानसिंह । सुबुद्धिप्रकाश छन्दो ख्या साढ़े सत्रह हजार श्लोक है। .... (सं० १८४७)।
१२ नथमल विलाला। (भरतपुरनिवासी २० नन्दलाल छावड़ा । मूलाचारकी खजांची) । इनका एक ग्रन्थ सिद्धान्तसार वचानका स० १८८८ में । हमने देखा है । यह सकलकीर्तिके संस्कृत २१ मन्नालाल सांगाका। चारित्रसारकी. ग्रन्थका अनुवाद है। संवत् १८२४ में बना है। वचनिका सं० १८७१ में। श्लोकसंख्या लगभग ७५०० है । जिनगुणविलास, २२ मनरंगलाल। ( कन्नौजके रहनेवाले नागकुमारचरित्र, ( १८३४ ), जीवंधरचरित्र पल्लीवाल )। सं० १८५७ में चौवीसी पूजापाठ (१८३५) और जम्बूस्वामीचरित्र, ये ग्रन्थ बनाया । कविता अच्छी है । नमिचन्द्रिका, भी इन्हींके बनाय हुए हैं । सब पद्यमें हैं। सप्तव्यसनचरित्र और सप्तर्षिपूजा ये ग्रन्थ भी कविता साधारण है।
इनके बनाये हुए हैं। १३ डालूराम । (माधवराजपुरनिवासी २३ लालचन्द (सांगानेरी) । षट्कर्मोपदे-.. अग्रवाल ) । गुरूपदेशश्रावकाचार छन्दोवद्ध शरत्नमाला (सं०१८१८) वरांगचरित्र, विमल(१८६७), सम्यक्त्वप्रकाश ( १८७१ ) और नाथपुराण, शिखरविलास, सम्यक्त्वकौमुदी, अनेक पूजायें।
आगम शतक, और अनेक पूजाग्रन्थ । सब १४ देवादास । (खण्डेलवाल बसवानिवासी)
छन्दोबद्ध। सिद्धान्तसारसंग्रह वचनिका (१८४४ ) और २४ सेवारामशाह। (जयपुरनिवासी)। तत्त्वार्थसूत्रकी वचनिका।
चौवीसी पूजापाठ (सं० १८५४) और धर्मो१५देवीदास । (दुगोदह केलगवाँ जिला पदेश छन्दोवद्ध । झांसी निवासी) । परमानन्दविलास छन्दोवद्ध २५ कुशलचन्द्र गाण यति । यति ( सं० १८१२), प्रवचनसार छ०, चिद्विलास- बालचन्द्रजी खामगांव वालोंने आपका बनाया वचनिका, चौवीसी पाठ।
हुआ 'जिनवाणीसार' नामका ७०० हिन्दी १६ सेवाराम । ( राजपूत ) । हनुमच्चरित्र
पयोंका ग्रन्थ बीकानेरके यतियोंके पास देखा
है। अध्यात्मिक ग्रन्थ है, रचना भी कहते हैं छन्दोवद्ध (१८३१), शान्तिनाथपुराण छ० अच्छी है। और भविष्यदतचरित्र छ।
२६ यति मोतीचन्द । उक्त यतिजीके १७ भारामल्ल । ये फर्रुखाबादके रहनेवाले कथनानुसार ये जोधपुरनरेश मानसिंहजीके सिंगई परशुरामके पुत्र थे और खरौआ जातिके सभाके रत्नों से एक थे । इन्हें मानसिंह ने थे। इन्होंने भिण्ड नगरमें रह कर संवत् १८१३ । जगद्गुरु भट्टारक ' पद प्रदान किया था । में चारुदत्तचरित्र बनाया। सप्तव्यसनचरित्र, दान- हिन्दीके श्रेष्ठ कवि थे। कथा, शीलकथा, रात्रिभोजन कथा ये सब २७ हरजसराय। ये स्थानकवासी सम्प्रछन्दोबद्ध ग्रन्थ भी इन्हींके बनाये हुए हैं। दायके थे । हिन्दीके अच्छे कवि थे । साधुगु
१८ गुलाबराय । शिखरविलास छ० सं० णमाला, देवाधिदेवरचना और देवरचना नामके १८४२ में बनाया।
ग्रन्थ आपके बनाये हुए हैं 1 'देवाधिदेव रचना'
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org