Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 49
________________ अङ्क १] नवयुवकोंको उपदेश। स्वसाधसे बचने के लिए, आत्माकी दृढतार्थ देशोंमें न्यूनतम जीवनकाल ४३ वर्ष है, वहाँ और मनकी मलीनताके दूरीकरणार्थ बली शरी- मातृभमि भारतमें केवल २४ है। आर्यकुमासे! रोंका होना आवश्यक है । स्वस्थ मन स्वस्थ बड़ी विचित्र घटना तो यह है कि सभ्य देशोंमें शरीरमें ही हो सकता है-यह लोकोक्ति प्रायः सभ्यताकी वृद्धिके कारण रोग, मृत्यु, दरिद्रता ठीक होती है। बस शरीर, मन और आत्मा इन बालकोंकी मरण-संख्यामें कमी और जीवतीनों रत्नोंकी रक्षार्थ आपको व्यायामकी ओर नाशाकी उन्नति होती है। परन्तु २० वीं ध्यान देना चाहिए । पर इससे भी आवश्यक शताब्दीकी अपूर्व सभ्यतामें रहते हुए हमारा कारण सावधान होनेके लिए मौजूद है । हमारे कितना अद्भुत सौभाग्य है कि हममें रोग, निर्बल रोगी शरीर संसार-यात्राके कष्ट क्लेश मृत्यु, दरिद्रताकी वृद्धि हो रही है, जीवनाशा दुःख विपत्तियोंको न सहार कर शीघ्र ही मृत्यु- प्रतिवर्ष कम होती जाती है और बालकोंके लोकमें प्रवासित होते हैं । इस पृथ्वीपर कोई मरनेकी संख्या अत्यन्त हृदयविदारक है। ये उद्विग्न सभ्य देश ऐसा नहीं जिसमें जीवनकाल इतना मनसे निकले हुए शब्द नहीं है, इन्हें मैं अपना अल्प हो जितना पुण्यभूमि वीरजननी भारत- उत्तरदातृत्व समझते हुए कह रहा हूँ—यतः भूमिमें है। देखिए । आप कोई असत्य भ्रभयुक्त विचार यहाँसे न ले जन्मपर जीवनाशाकी पत्री। जीता जाय, मैं सरकारकी गणना-रिपोर्टोसे आपके सन्मुख कुछ गणनायें रखता हूँ। देश पुत्र पुत्री । न्यूजीलैंड ५४.४ जीवनयात्राकी भयंकरता। ५७.३ स्वीडन ५०.९ ५३.६ अब यदि हम अपने बालकोंकी जीवन शक्ति नारवे ५०.४ का मुकाबला सभ्य देशोंके बालकोंके साथ करें,तो डेन्मार्क ५०.२ ५३.२ हमें वास्तविक दशाका ज्ञान हो सकता है । इस हालैण्ड ४६.२ ४९.० संसारमें हम यात्री हैं और यात्रा-स्थान यद्यपि फ्रान्स ४५.७ अत्यन्त सुन्दर है पर साथ ही बहुत छोटा हैबैल्जियम ४५.३ ४८.८ उसके पूर्व एक अज्ञात अनन्त यात्रा हम कर स्काटलैंड ४४.७ ४७.४ आये होते हैं और एक अज्ञात अनन्त यात्राकी इंग्लैण्ड ४४.१ ४७.८ सम्भावना सामने खड़ी होती है । यह यात्रा इन इटली ४२.८ ४३.१ दो यात्राओको मिलानेवाला एक पुल है जिसके प्रशिया ४२.१ ४५.८ १०० भाग हैं-उस पुलके नीचे कालकी सज्जनो! आप क्या आशा रखते हैं ? जग- भयंकर नदी अत्यन्त वेगसे बह रही है। प्रत्येक द्गुरु भारत जिसमें जन्म लेना सौभाग्य समझा भागके सफरमें कुछ यात्री रोग निर्बलता क्षुधाके जाता रहा है, जो एक अद्भुत सभ्यताके कारण हतोत्साह हो जाते हैं, उनका शरीर शिखर पर पहुँच चुका है, उसके पुत्र पुत्रियोंकी थरथराता है और असंख्य लाशोंको बहते देखजीवनाशाकी मात्रा क्या है ? इसमें जन्म लेने. कर भीतात्मा नदीमें गिर जाते हैं। इतना वाले पुत्रोंके जीनेकी आशा २३.६ वर्ष है और तो स्पष्ट है कि बली साहसी हृष्टपुष्ट शरीर इस' पुत्रियोंकी २४ वर्ष ! इस प्रकार जहाँ यूरोपीय यात्रामें कामयाब हो सकते हैं। निर्बलेन्द्रिय ५४.१ ४९.१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116