Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 102
________________ (४) मनोरमा उपन्यास-हिंदीके प्रसिद्ध लेखक शीलकथा--भारामल्ल कृत । मूल्य चार आने। आरानिवासी बाबू जैनेन्द्रकिशोरजीने शीलकथाके श्रावकधर्म संग्रह-अनेक श्रावकाचारोंका आधारसे उपन्यासकी सुन्दर रसीली भाषामें यह विचार और मनन करके श्रीयुत मास्टर दरयावसिंह पुस्तक लिखी है। प्रत्येक स्त्रीपुरुष, और बालकके सोधियाने इस ग्रन्थको नये ढंगपर लिखा है। अनेक पढ़ने योग्य है । मू० आठ आने । पुराने और नये विषयोंपर बड़े परिश्रमके साथ इसमें मुनिशदीपिका-नयनसुखजीकृत प्राचीन विचार किया गया है । इसका स्वाध्याय करनेसे श्राआचार्योंका चरित।मू०)॥ वकाचारकी जानने योग्य अनेक बातें ज्ञात हो सकेंगी। मृत्युमहोत्सव-सदासुखजी कृत वचनिका कीमत कपड़ेकी पक्की जिल्दका सवा दो रुपये । और दो तरहके समाधिमरण सहित । मू० दो आने। सप्तव्यसन चरित्र--यह २२५ पृष्ठका ग्रन्थ मोक्षमार्गप्रकाश-भाषा वचनिकामें अभी तक है। इसमें सातों व्यसनों की सात कथायें हैं और ऐसी जैनधर्मके जितने प्रन्थ बने हैं, उनमें मोक्षमार्गप्रकाश सरल हिन्दी भाषामें लिखी हैं कि, साधारण पढ़े लिखे सर्वोपरि है। यह किसी मलग्रन्थका अनुवाद अथवा स्त्रीपुरुष अच्छी तरहसे समझ सकते हैं। कथायें खूब टीका नहीं है, किन्तु एक आचार्यतुल्य विद्वानकी विस्तारसे हैं । पांडवचरित्र, चारुदत्तचरित्र, रामचरित्र, स्वतंत्र रचना है। गहनसे गहन विषयोंका इसमें और कृष्णचरित्र तो एक प्रकारसे चार जुदे २ पुराण बड़ी ही मार्मिकता और सरलतासे निरूपण किया हैं । छपाई बहुत ही अच्छी है । मूल्य केवल चौदह है। काँका स्वरूप और उनका परिणाम, संसार आने । अवस्थाके दुःख, रत्नत्रय तथा मिथ्यादर्शन, मिथ्या- समाधिमरण-दो तरह का। मूल्य एक आना। ज्ञान, मिथ्याचरित्रका स्वरूप, अद्वैतवादी, कर्तावादी, सज्जनचित्तवल्लभ---यह ग्रन्थ कई वर्ष पहले नैयायिक आदि जुदा २ मतोंका खंडन, कुगुरु. कदेव. छपा था, किन्तु अब कई वर्षों से नहीं मिलने के कारण कुधमका स्वरूप और निषेध, तीन प्रकारके जैनाभा- फिरसे छपाया गया है। इसमें मूल पद्य उसके नीचे सोंका स्वरूप, चारों अनुयोगोंका एक विलक्षण ही स्वर्गीय पं० मिहरचन्दजीका पद्यानुवाद, और सरल प्रकारका निरूपण, और मोक्षमार्गका स्वरूप आदि अर्थ हैं । अन्तम यती नयनसुखजीका बनाया हआ विषयोंका इसमें खूब ही विस्तारसे वर्णन किया है। पद्यानुवाद भी लगाया गया है। वैराग्यका मनोहर ५०० पृष्ठका बहुत ही सुन्दरतासे छपा हआ ग्रन्थ प्रन्थ है । मूल्य दो आने मात्र। है। संशोधन बहुत ही बारीकासे किया गया है। सामायिक पाठ और आलोचना पाठपहली बार छपा था, उसमें भाषामें बहुत कुछ फेरफार मूल्य एक आना। कर दिया था, परन्तु अबकी बार ज्योंका त्यों पुरानी सामायिकपाठ-आचार्य अमितगतिकृत मूल भाषामें ही छपाया गया है। मूल्य पहले तीन रुपये श्लोक और ब्रह्मचारी शीतलप्रसादकृत भा. टी. रक्खा गया था । अबकी बार सिर्फ १॥1) और सहित । मूल्य एक आना। कपड़ेकी जिल्दका २) रुपये है। सूक्तमुक्तावली--श्रीसोमप्रभाचार्यकी सूक्तमुक्तारत्नकरंडश्रावकाचार सान्वयार्थ-प्रत्येक वली जिसका प्रत्येक श्लोक कंठ करने लायक है, और जैनी विद्यार्थीको सबसे पहले यही धर्मशास्त्र पढ़ाया जो सचमुच ही मोतियों की माला है, फिरसे छपकर जाता है। इस ग्रन्थके सिर्फ १५० मूल श्लोक हैं। तैयार है । अबकी बार यह पाठशालाके विद्यार्थियोंके पहले मूल श्लोक, पीछे अन्वयपूर्वक संस्कृत पदोंको बहुत ही कामकी बन गई है । क्योंकि इस संस्करणमें कोष्टकमें रखकर भाषामें अर्थ किया है। कठिन पहले मूल श्लोक, फिर कविवर बनारसीदास और श्लोकोंका भावार्थ भी दिया है। मूल्य चार आने। कवरपालजीका पद्यानुवाद और अन्तमें अन्वयानुगत शिखरमाहात्म--भाषा वचनिकामें । मूल्य हिन्दी भाषाटीका ( रत्नकरंडके समान) तथा भावार्थ छपाया गया है। मूल्य छह आने । एक आना। . Jain Education International ***For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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