Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 103
________________ शानसूर्योदयनाटक-श्रीवादिचन्द्रसूरिके संस्कृत अंजनासुन्दरी नाटक--बाबू कन्हैयालाल ग्रन्थका सुन्दर सरल हिन्दी अनुवाद जैनाहेतीके श्रीमाल कृत । मूल्य आठ आने । सम्पादक श्रीनाथूराम प्रेमीने गद्यका गद्यमें और इन्द्रियपराजयशतक--मूल प्राकृत गाथायें पद्यका पद्यमें किया है। यह अध्यात्मका नाटक है। और उसके नीचे भाषा कविता है । बड़ा ही उपदेश इसमें पुरुषके सुमति और कुमति स्त्रियोंसे उत्पन्न हुए, पूर्ण और वैराग्यमय ग्रन्थ है । इंद्रियोंपर विजय प्राप्त प्रबोध, विवेक, संतोष, तथा मोह, क्रोध, लोभ आदि करनेके लिए प्रत्येक व्यक्तिको पढ़ना चाहिए। हिन्दी पुत्रोंकी लड़ाई हुई है और अन्तमें प्रबोधकी विजय कविता कंठ करने योग्य है । मूल्य दो आने । होकर आत्मा मुक्त हो गया है। मूल्य आठ आने । ऋषिमंडलयंत्रपूजन--(मंत्रयंत्रसहित )-- ज्ञानदर्पण-पं० दीपचन्दजी शाह एक अच्छे मंत्रशास्त्रका यह अपूर्व ग्रन्थ है । प्रसिद्ध “ विद्याआध्यात्मिक पंडित और कवि हो गये हैं । यह ग्रंथ नुशासन ” नामक ग्रन्थका साररूप श्रीगुणनंदि उन्हींका बनाया हुआ है । कविता बनारसीदासजाँके आचार्यने इसे रचा है । साथमें "कापमंडल यंत्र" नाटक समयसारके ढंगकी है। शुद्धनयका कथन है। का नकशा भी है । मूल्य पाँच आना। प्रत्येक अध्यात्मप्रेमीको मगाँना चाहिए। अभी तक कल्याणमन्दिर--अन्वय, हिन्दी अर्थ, भावार्थ यह प्रन्थ बिलकुल अप्रसिद्ध था । मूल्य चार आने। और नवीन भाषापद्यानुवाद सहित । इसमें भक्तामरके समान पहले प्रत्येक श्लोकका अन्वयानुगत पदार्थ अकलंकचरित्र-अकलंकस्तोत्र और अकलंक. लिखकर फिर प्रत्येकका भावार्थ लिखा है । मूल्य चार आने । देवका जीवनचरित्र और हिंदी पद्यानुवाद भी साथमें क्या ईश्वर जगत कर्ता है ? मूल्य )॥ . लगा हुआ है, जो कि खड़ी बोल की कवितामें । खंडेलवाल इतिहास-खंडेलवाल जातिकी - हराएकके समझमें आने योग्य और सुन्दर है । मूल्य र जातियोंकी उत्पत्ति आदिका वर्णन है । मूल्य तीन आने । ढ़ाई आने । अठारहनाते-यति नयनसुखदासजीकी फड़कती गोमहसार--कर्मकाण्ड मूल गाथा संस्कृत छाया हुई कवितामें दुराचारसे एक ही भवमें होनेवाले और पं. मनोहरलाल शास्त्रीकृत भाषा टीका सहित । अठारहनातांका वर्णन है । मूल्य एक आना। . मल्य दो रुपये। . अनुभवप्रकाश--यह पंडित दीपचन्द शाहका गृहस्थधर्म-ब्रह्मचारी शतिल प्रसादजी कृत। बनाया हुआ है । यह वचनिकामय है । इसमें शुद्धा. प्रत्येक गृहस्थके बड़े कामकी पुस्तक है। मूल्य १०)। त्मानुभवका विवेचन है। इसके स्वाध्यायसे आत्माको चन्द्रप्रभचरित-महाकवि श्रीवीरनान्द आचाय बड़ी ही शान्ति मिलती है। एक दक्षिणी धर्मात्माने कृत-इसमें आठवें तीर्थकर श्रीचंद्रप्रभु भगवान्का प्रकाशित कराया है । मूल्य प्रायः लागतके लगभगका " है । मूल्य प्रायः लागतक लगभगका विस्तृत चरित लिखा गया है और प्रसंगानुसार अर्थात् छह आने है। वैराग्य, श्रृंगार वार आदि सभी रसोंका वर्णन किया , ... आराधनाकथाकोश-छन्दोबद्ध । इसमें कई है। अनुवाद बहुत सुन्दर हुआ है । पाठक पढ़कर आचार्यों और राजाओंकी कथायें हैं । मूल्य ३॥ रुपया। खुश होंगे। कीमत सादी जिल्दका एक रुपया और आराधनाकथाकोश--ब्रह्मचारी नेमिदत्त कृत पक्की जिल्दका सवा रुपया। मूल और पं. उदयलाल काशलीवाल कृत हिन्दी जिनशतक-श्रीमत्समंतभद्राचार्य विरचित मूल भाषाटीका सहित । मूल्य पहला भाग ११) दूसरा और नरसिंहभदृ कृत संस्कृत टीका तथा पं० लालाभाग १०), तीसरा भाग १॥) । रामजी कृत भा० टी० सहित । मूल्य बारह आने । आप्तपरीक्षा-मूल और भाषाटीका सहित । जिनेन्द्र पंचकल्याणक--(पंचमंगल) जैनपाठमूल्य पाँच आने । शालाओं में पढ़ाये जानेके लिए यह पुस्तक तैयार की आलोचना पाठ-अर्थसहित । मूल्य -)। मात्र। गई है। पहले मंगलपाठ फिर कठिन कठिन शब्दोंका : Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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