Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 113
________________ नये नये जैन ग्रन्थ | आदिपुराण भाषाकासहित । यह बड़ा भारी ग्रन्थ ४-५ वर्षसे छप रहा था । अब पूरा छपकर तैयार हुआ है । जैनधर्मका इतना बड़ा ग्रन्थ' अब तक कोई भी नहीं छपा । इसके सब मिलाकर लगभग १८०० पृष्ठ । खुले पत्रोंपर छपा । मन्दिरों में जो सब जगह भाषावचनिका मिलती है, उससे इसमें विशेषता है । वचनिका के साथमें मूल श्लोक नहीं हैं, पर इसमें मूल श्लोक भी साथ ही साथ दिये हैं । इसकी भाषा भी सबकी समझमें आने योग्य और मूलके अनुसार है । प्रत्येक मन्दिर में, भण्डारमें भगवजिनसेनाचार्य और गुणभद्राचार्य के इस विशाल ग्रन्थकी एक एक प्रति रहना चाहिये । जो लोग ग्रन्थ मँगाना चाहे वे चिट्ठी के साथ १|| ) डेड़ रूपयाका मनीआर्डर भी पेशगी भेज देवें । क्योंकि इसका ae ad se aपयाके करीब लगता है । लोग . अक्सर बी. पी. वापस कर देते हैं । इस कारण डाँक खर्च पेशगी आये बिना हम वी. पी. नहीं भेजेंगे | ग्रन्थकी न्योछावर डॉक खर्चके सिवाय १६) सोलह रुपया है । हरिवंश पुराण. पं० गजाधर लालजी न्यायतीर्थकृत हिन्दी अनुवाद । मोटा कागज, मोटेसाफ अक्षर, कपड़े की मजबूत सुन्दर जिल्द बंधा हुआ । सुन्दरतासे छपा "हुआ है। मूल्य छह रु० । रत्नकरण्ड श्रावकाचार | हिन्दी पद्यानुवाद | अनुवादक, सुकवि पं० गिरिधर शर्मा । जो विद्यार्थी संस्कृत नहीं जानते हैं उन्हें मूल रत्नकरण्ड अर्थसहित रटा दिया जाता है । पर इससे लाभ कुछ नहीं होता है । विद्यार्थी मर्म नहीं समझते और थोड़े ही दिनोंमें भूल जाते हैं । इस लिए बहुत दिनोंसे यह आवश्यकता बतलाई जा रही थी कि बालबोध-कक्षाओंके लिए रत्नकरण्ड छन्दोबद्ध बना दिया जाय । परीक्षालय में छन्दबद्ध Jain Education International रत्नकरण्ड नियत भी कर दिया गया था; पर छन्दोबद्ध रत्नकरंड कोई था ही नहीं, इस कारण हमने सुकवि श्रीगिरिधर शर्मासे इसे हाल ही बनवाकर प्रकाशित किया है । कविता बोलचालकी हिन्दी भाषा में है जो सहज ही समझमें आ जाती है । इस बात की कोशिशकी गई है कि मूलका कोई भाव रह नहीं जाय और संशोधन में इसका ध्यान रक्खा गया है कि कोई शास्त्रविरुद्ध बात न लिखी जाय । पाठशालाओंके संचालकोंको नमूने के तौर पर एक प्रति मँगा देखना चाहिए । मुल्य तीन आने । गोम्मटसार जीवकांड — भाषाटीका । लीजिए.. अब पूरा गोम्मसार भाषाटीका सहित तयार हो गया। पहले सिर्फ इसका कर्मकाण्ड भाषाटीकासहित छपा था । अब जीवकांडकी भी भाषा तैयार होगई है । इसे पं० खूबचन्दजी शास्त्री सम्पा दक सत्यवादीने लिखा है । निर्णयसागर प्रेसमें बहुत शुद्धतासे छपा है । मूल्य २ || ) है | लब्धिसार- (क्षपणासार गर्भित ) प्राकृत गाथा, संस्कृत छाया, और संक्षिप्त हिन्दी भाषा सहित छपा है । इस ग्रंथ में कर्मों से छूटनेका उपाय विस्तार सहित दिखलाया है । इसमें मिथ्यात्वकर्म छुड़ाने के लिये पाँच लब्धियोंका वर्णन है । पाँचों में मुख्यता करण लब्धिका स्वरूप अच्छी तरह दिखलाया गया । इसी से मिथ्यात्व कर्मसे छूटकर सम्यक्त्व गुणकी प्राप्ति होती है । यही गुण मोक्षका मूल कारण है। निर्णयसागर में बहुत शुद्धतासे छपा हैं । मूल्य १|| ) 1 जैनव्रत कथासंग्रह - इसमें ऋषिपंचमी, सुगंधदशमी, अनंतपंचमी, रत्नत्रय, दशलक्षण, मुक्तावली, रविव्रत, पुष्पाञ्जलि और नंदीश्वर इस प्रकार ९ व्रत विधि उद्यापन उनका माहात्म्य और फल पानेवाले पुरुषोंके चरित्र छंदोबद्ध हैं । मूल्य । ) प्रभंजनचरित-प्रभंजन नामक मुनिका चरित्र । इसकी कथा बहुत ही दिलचस्प है । त्रियाचरित्र खूब ही दिखलाया है । मूल्य चार आने । पुण्याश्रव - इसमें छोटी बड़ी ५६ कथायें हैं । कथायें सत्रु धार्मिक भावोंसे परिपूर्ण हैं । जैनसमा - जमें इस सुन्दर कथा -ग्रंथ स्वाध्याय का खूब प्रचार For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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