Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 114
________________ है। पहलो आवृत्ति बिक जानेपर दूसरी बार छपा इसे बड़े परिश्रमसे लिखी है। इसमें सम्पूर्ण तीर्थोके है। कीमत तीन रुपया। रास्ते धर्मशाला वहाँके देखने योग्य स्थानोंका बहुत धनंजय नाममाला-मूल मात्र मूल्य सवा आना। अच्छा वर्णन है । १०८ पृष्ठकी पुस्तकका मूल्य धनंजय नाममाला भाषाटीका-इसमें एक सिर्फ चार आना है। शब्दके अनेक अर्थ बतलाये गये हैं, बड़ा उपयोगी विद्वद्रत्नमाला-इसमें श्रीजिनसेन, गुणभद्र', ग्रंथ है। प्रत्येक जैनपाठशालाओंमें पढाने योग्य है। पं० आशाधर, श्रीअमितिगति, श्रीवादिराज, श्रीमअंतमें शब्दोंकी सूची भी दी है। मूल्य सात आने। ल्लिषेण और समन्तभद्राचार्य आदि संस्कृतके सात बालगणित-बाब दयाचंदजी गोयलीय बी.ए. ग्रंथकताओंका और उनके बनाये हुए ग्रंथोंका कृत। गणित सीखनेवाले विद्यार्थियों के लिए यह परिचय है । मूल्य दश आना। --पुस्तक बड़ी लाभदायक है। मूल्य तीन आने। छहढाला सार्थ-इसका हिन्दी भासार्थ श्रीयुत । जैनबालबोधक प्रथम भाग-५० पन्नाला- व. शीतल प्रसादजीने किया है । छोटीसी पुस्तकम लजी बाकलीवालकृत। फिरसे संशोधित होकर छपा जैनधर्मका मर्म बड़ी खूबोके साथ लिया गया है। विद्यार्थियोंके लिये बड़ी उपयोगी पुस्तक है। है। मूल्य ।) मूल्य तीन आना। र तत्त्वमाला दूसरा भाग-व्र० शीतल प्रसा'दजो कृत । इसमें जीव, अजीव, आश्रव, बंध, संबर, संस्कृत प्रवेशिनी- अनेक महानाय प्राचीन व्याकरणोंकी पद्धतिको क्लिष्ट व रटंतविद्या समनिर्जरा और मोक्ष आदि सात तत्त्वों और पिंडस्थ, पदस्थ, रूपस्थ और रूपातीत चारों ध्यानोंका वर्णन झकर संस्कृत पढ़नेसे डरते है। इस लिये है। विद्यार्थियोंके बड़े कामकी पुस्तक है । पृष्ठ संस्कृतमें सुगमतासे प्रवेश करने के लिये यह पुस्तक बड़ी उपयोगी है। अनेक व्याकरण संबंधों ग्रंथोका संख्या १०४ मूल्य.।) पटन करके इसकी रचना हुई है। इसके पहनेस पूजाविधानसंग्रह-इसमें पंचकल्याणक, पंच व्याकरण के कठिन सूत्र व नियमादि रटने नहीं परमेष्ठी, अष्टकमदहन, शिखरमाहात्म्य और निवाण पडते। इसमें आये हए कछ शब्द व धातुओका इन पाँचों विधानोंका संग्रह है। पुस्तक माट अर्थ मनन करने मात्र ही संस्कृतमें अनुवाद करना अक्षरों में सुन्दरता शुद्धतापूर्वक छपी है। अंतमे वार्तालाप करना व पुस्तकों का अर्थ लगाना बहुत शान्तिपाठ और विसर्जन भी है । मूल्य छह आने। सुगम हो जाता है। मूल्य एक रुपया । कर्म-दहन पूजा विधान-स्व. पं० टेकचंदजी आत्मशुद्धि-नामसे ही समझ लीजिये । लेखक कृत । उपवासविधि, जाप्यविधिसहित बहुत शुद्धता हैं लाला भुन्शीलालजी एम. ए. गवर्नमेंट पेन्शनर । पूर्वकं छपा है । मूल्य पाँच आने । मूल्य साढ़े तीन आने । गिरनारमाहात्म्य पूजाविधान-स्व. पं० प्राचीन जैन इतिहास ----'द ला भाग। बमभ हजारीमल्लजी कृत। यह बात सर्वमान्य है कि नाथ भगवानसे लेकर वासुपूज्य तीर्थकर तकका भक्तिके विना किसीपर किसीके वचनोंका असर नई पद्धतिले लिखा हुआ इतिहास । कई नकशे भी नहीं पड़ता और असर विना कोई भी किसीके दिये हैं । जैनपाठशालाओंमें पढ़ाये जानेके लिए अनुसार चलनेको तैयार नहीं होता। यह ग्रंथ बाबू सूरजमलजी सम्पादक जैन प्रभातो लिखा भक्तिका साधन है । कविता इसकी बहुत सुन्दर है । मूल्य बारह आने। है। मूल्य नौ आने। प्रातःस्मरणपाठ-ज्योतिपरत्न पं. जियालालजी कैलाशयात्रा-व० लामचीदासजीका कैलाशका कृत । मूल्य एक आना । आँखों देखा अद्भुत वर्णन है । दूसरी बार छपी है। मिलनेका पता- .. मूल्य एक आना। जैनतीर्थयात्रादीपक-दिल्लीके लाला फतेह पर जैन ग्रन्थरत्नाकर कार्यालय, चन्दजीने सम्पूर्ण जैनतीर्थोंकी बन्दना करके हीराबाग, पो. गिरगाँव-बम्बई । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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