Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 109
________________ स्वरूपसम्बोधन और तीसरा चौथा अनंतकीर्ति चाहता है। उपदेशकोंके बड़े ही कामका है । मूल्य रचित लघु वृहत् सर्वशसिद्धि। मूल्य लागत- ॥) आने । का छह आने । हितोपदेश-मूल । मूल्य आठ आने । विक्रान्त कौरवीय नाटक-श्रीहस्तिमल्ल- (जैनमत दिग्दर्शन) कविकृत । मूल्य लागतका छह आना। An Insight into jainism सागारधर्मामृत--सोपज्ञ भव्यकुमुदचन्द्रिका यह पुस्तक अंग्रेजी भाषामें है । इसमें जैन धर्मक टीका सहित । मूल्य लागतका ।) महत्व, जैनमत नास्तिक मत नहीं है, जैनी किसको सुभाषितरत्नसंदोह-यह ग्रंथ धर्मपरीक्षाके पूजते हैं, कर्म फिलोसफी, धर्म, अहिंसा, संसार कर्ता अमितगत्याचार्यकृत मूल संस्कृत है । इसमें सां- और मोक्ष इन सात महत्त्वपूर्ण निबंधोंका संग्रह है। सारिकविषयनिराकरण, कोपनिराकरण, मायाहंकार प्रत्येक अंग्रेजीदा जैनी भाईको इसे अवश्य पढ़ना आदि ३३ विषय हैं । प्रत्येक विषयका निरूपण ऐसा चाहिए । अजैनोंको दिखलानेके लिए भी यह पुस्तक विस्तृत किया है कि प्रत्येक श्लोक कण्ठ रखनेको जी बड़ी अच्छी है। मूल्य केवल ।)। हिन्दी-ग्रन्थरत्नाकर कार्यालयकी सर्वसाधारणोपयोगी हिन्दीकी उत्तम पुस्तकें । अच्छी आदतें डालनेकी शिक्षा-विद्यार्थि- हैं, उनके उदाहरण और चित्र भी इसमें दिये गये योंके बड़े कामकी पुस्तक है । इसे पढ़नेसे खराबसे हैं। हिन्दीमें इस विषयका यह सबसे पहला ग्रन्थ है। खराब आदतें छूट जाती हैं । मूल्य ढाई आने। रोगियों, वैद्यों, और निरोगों-सबको पढ़ना चाहिए। __ अन्नपूर्णाका मंदिर-पवित्र, शिक्षाप्रद, करु- मूल्य कपड़ेकी जिल्दका १.), सादी जिल्दका ) णारसपूर्ण सामाजिक उपन्यास । यह उपन्यास इतना कठिनाई में विद्याभ्यास-बड़ी बड़ी कठिनाइ अच्छा है कि थोड़े ही समयम अंगरेजी, मराठी आदि योंके रहते हए भी जिनके हृदय में विद्याके प्रति भक्ति भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है । मूल्य चादह आने। होती है वे किस तरह विद्वान् बन जाते हैं, मोची, आँखकी किरकिरी-एशियाके सर्वश्रेष्ठ कवि कुम्हार, खेतिहर, बढ़ई, मल्लाहों जैसे नौच कुलोंमें रवीन्द्रनाथ ठाकुरके 'चोखेरवाली' नामक प्रसिद्ध भी जन्म लेकर,दरिद्रताके दुखोंमें पड़े रहकर भी उद्योगा उपन्यासका अनुवाद । बहुत ऊँचे दरजेका उपन्यास पुरुष कैसे बड़े बड़े विद्वान् बन गये हैं, अन्धों और है। मनुष्यके आंतरिकभाव-चित्रोंका, उनके उत्थान पतितोंने भी अपनी विद्यावृद्धि किस तरह की है, इन पतन वा घात-प्रतिघातोंका इसमें बड़ा सुन्दर वर्णन सब बातोंके ऐतिहासिक उदाहरण इस पुस्तकमें दिये है । मूल्य १॥), सादी जिल्दका १॥)। हुए हैं । पढ़कर तबीयत फड़क उठती है । विद्याभि- उपवासचिकित्सा-जैनधर्ममें व्रत करने और रुचि उत्पन्न करने और उद्योगसे प्रेम करना सिखाउपवास करनेका बहुत महत्त्व बतलाया है। परन्तु नेके लिए यह पुस्तक जादूका काम करती है। प्रत्येक अभीतक लोग व्रत या उपवासको केवल 'धर्म' या भारतवासीके कानों तक इसके शब्द पहुँचना चाहिए। . 'स्वर्ग जानेकी सीढ़ी' समझते हैं । इस पुस्तकमें विद्यार्थियों को तो अवश्य पढ़ना चाहिए। अँगरेजीमें बतलाया गया है कि उपवास करनेसे केवल धर्म ही इसकी लाखों प्रतियाँ बिक चुकी हैं । भाषा सुगम है। नहीं होता है; किन्तु यह नीरोग होनेकी सबसे अच्छी मूल्य ॥) दवाई है । सारे दुनियाके भयंकरसे भयंकर रोग उप- चरित्रगठन और मनोबल-इस पुस्तकमें वाससे आराम हो सकते हैं । क्यों हो सकते हैं, और बतलाया गया है कि अपनी चालचलनका बनाना कैस.हो. सकते हैं? इन प्रश्नोंका उत्तर इसमें विस्तारसे अपने हाथमें है। अपने मानसिक बलसे चाहे जो दिया गया है। जिन लोगोंने उपवाससे रोग अच्छे किये अपनी चालचलन सुधार सकता है। पुस्तक बड़े ही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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