Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 100
________________ है। यह भादोंम बाँचन के लिए भी बड़े काम की है। गया है । इसमें पुराणों की पोलें एक मजेदार कथाक साधारण भाई भी इससे सूत्रोंके अर्थ बांचकर समझ साथ खोली गई हैं। नामी नामी धूर्तीकी बातें सुनकर सकते हैं । रत्नकरंडके समान इसमें भी पद पदके अर्थ आप चकरावेंगे और कहेंगे कि ये पुराण हैं या किसी किये हैं। मूल्य 12) कपड़ेकी जिल्दका १०)। मसखरेकी लिखी हुई किताबें हैं । छपाई बहुत सुन्दर सूत्र-( मोक्षशास्त्र) मूल शुद्ध पाठ । है। आप पढ़िये और अपने पौराणिक मित्रोंका मूल्य डेढ़ आना। सुनाइये । मूल्य सिर्फ तीन आने । दर्शनकथा-भारामलजीकृत । मूल्य तीन आने । निशिभोजन कथा-मूल्य दो आने । दर्शनपाठ--दौलतराम और बुधजन कृत दर्शन । निर्वाणकाण्ड-मूल गाथा, संस्कृत छाया, भाषा सहित । मूल्य एक आना। कविता और महावीर पूजा सहित । मूल्य एक आना। दानकथा-(चार दानकथा ) बखतावरमल नित्यनियमपूजा संस्कृत तथा भाषा--- रतनलालकृत । मूल्य दो आने । द्रव्यसंग्रह--मूल गाथा, संस्कृत छाया, हिन्दी र इसमें नीचे लिखे पाठ छपे हुए हैं:--लघुभिषेकपाठ अन्वयार्थ और कविवर द्यानतरायजीकृत भाषा कविता संस्कृत, नित्यपूजा संस्कृत प्राकृत, देवगुरशास्त्रकी सहित । चौथी बार छपाया गया है। पहिली वार भाषा पूजा, बीसतीर्थकर पूजा, अकृत्रिमचैत्यालयोंके प्रत्येक गाथाकी संस्कृत छाया नहीं थी वह अबकी अर्घ संस्कृत प्राकृत, सिद्धपूजा संस्कृत, सिद्धपूजाका बार लगा दी गई है। चतुर विद्यार्थी इसे विना भावाष्टक, सोलहकारणादिक अर्घ, पंचपरमेष्टीकी गुरुके भी पढ़ सकता है। इस प्रन्थमें जैनधर्मके जयमाला प्राकृत,शान्तिपाठ संस्कृत, विसर्जन संस्कृत, मूलभूत छह द्रव्य नव पदार्थों का बड़ी उत्तमतासे और भाषास्तु तिपाठ । प्रायः बहुतसे लोग इनके वर्णन किया है। मूल्य चार आने । उलटे सीधे पाठ वा द्रव्य चढ़ाने के मंत्र अशुद्धतासे धानतविलास-( धर्मविलास ) कविवर । पढ़ते थे। इस कारण हमने बहुत शुद्धतासे अनेक द्यानतरायजीकी फुटकर कविताओंका अपूर्व संग्रह। प्राचीन प्रतियोंसे शुधवाकर इसे छपवाई है। मूल्य इसमें मंगलाचरण, उपदेशशतक, सुबोध पंचासिका, चार आने। धर्मपचीसी, तत्त्वसारभाषा, दर्शनदशक, ज्ञानदशक, नियमसार-आचार्य कुन्दकुन्द भगवान् कृत । द्रव्यादि चौबोलपचीसी, व्यसनत्याग षोडश, सरधा यह प्रन्थ अभी तक अलभ्य था। किसीको इसका चालीसी, सुखबत्तीसी, विवेक वीसी, भाक्ति दशक, नाम भी मालूम न था । यह समयसार, प्रवचनसार धर्मरहस्य बावनी, दान बावनी, चार सौ छह जीव- आदिके ही समान अध्यात्मका प्राकृत गाथाबद्ध ग्रन्थ समास, दशस्थल चौबीसी, व्यौहार पच्चीसी, आरती है। इस पर निग्रन्थ मुनि श्रीपद्मप्रभमलधारीकी दशक, दशबोल पच्चीसी, जिनगुणमाला सप्तमी, संस्कृत टीका है जो साथ ही छपी है और सर्वसाधासमाधिमरण, आलोचनापाठ, एकीभाव स्तोत्र, स्वयं- रणके समझने के लिए जैनमित्रके सम्पादक ब्रह्मचारी भूस्तोत्र, पार्श्वनाथ स्तवन, तिथिषोड़शी, स्तुतिबारसी, शीतलप्रसादजीकी बनाई हुई भाष टीका भी शामिल यतिभावनाष्टक, सज्जनगुण दशक, वर्तमान वीसी- कर दी गई है। मूल्य कपड़ेकी जिल्दका दो रुपया: दशक, अध्यात्मपंचासिका, अक्षरबावनी, नेमिनाथ और सादीका पोने दो रु.। बहत्तरी, वज्रदन्तकथा, आठगण छन्द, धर्मचाहगीत, नेमिचरित-या नेमिदूत काव्य । यह संस्कृतम आदिनाथस्तुति, शिक्षापंचासिका, जुगलआरती,वैराग्य- है और महाकवि कालिदासके मेघदूत के चौथे चर• छत्तीसी, वाणीसंख्या, पल्लपचीसी, षटगुणी हानि वृद्धि णोंकी समस्यापूर्ति करके रचा गया है। बहुत ही लाभ, पूरणपंचासिका इन सबका समावेश किया सुन्दर काव्य है। इसमें भगवान नेमिनाथ और गया है । मूल्य एक रुपया । कपड़ेकी जिल्दका १।)। राजीमतीका पवित्र चरित्र ग्रथित किया गया है । धूर्ताख्यान-धर्भपरीक्षाके ढंगका यह नवीन साथमें भाषाटीका भी है जो बहुत सरल गौर सुन्दर मन्थ एक संस्कृत ग्रन्थके आधारसे हिन्दीमें लिखा भाषामें लिखी गई है । मूल ग्रंथकर्ता कविवर विक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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