Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 98
________________ ACCECENTRE NAMANA तीनविविधप्रसङ्ग। अनुभवानन्द' और 'स्वसमरानन्द' जैसी पुस्तकें स्थिति हमें कहनेको बाध्य करती है। इसी कारण आपने लिख डालीं-दूसरोंको आपने बलशाली और आज दो शब्द लिखना पड़े हैं । अन्तमें अनन्त जयी बननेका उपदेश अवश्य किया; परन्तु स्वयं बलशाली वीरप्रभुसे हम प्रार्थना करते हैं कि वे आप अपने दुर्बल मन पर विजय न कर सके-अनु- आपके दुर्बल-निस्सत्व हृदयको बल प्रदान कर भवानन्द और स्वसमरानन्द आपके कुछ भी काम न जैनसमाजको एक सच्चे वीर, मनस्वी और 'मनस्येक आ सके ! महाराज, इस धृष्टताको क्षमा कीजिए, वचस्येकं कर्मण्येकं महात्मनां' के रूपमें आपका कारण संसार-पंक-लिप्त हम लोग आपको उपदेश साक्षात् करावे ! करनेके लायक नहीं हैं। पर आपकी दया-जनके ८ सम्मेलनकी परीक्षामें जैन विद्यार्थी। - हिन्दी-साहित्यसम्मेलनकी परीक्षामें नीचे लिखे जैन विद्यार्थी इस वर्ष उत्तीर्ण हुए हैं, जिन्हें जैनग्रन्थरत्नाकरकी ओरसे बीस बीस रुपये ( कुल १४० रु० ) पारितोषिकमें दिये गये हैं: - - । कमसंख्या नाम. पिताका नाम ग्राम श्रेणी बुलाकीरामजी, जोधराजली मदनलाल दौलतराम नानूराम गोविंददास नन्दकिशोर निलप्रसाद मुख्तारसिंह गरौठ ( इन्दौर) महरौनी (झाँसी) - २२२ २२४ २२५ ३३४ बंशीधरजी वृन्दावनजी ज्योतीप्रसादजी वृन्दावनजी प्रथम द्वितीय प्रथम द्वितीय द्वितीय प्रथम द्वितीय सदर, झाँसी महरौनी (झाँसी) उपहारके ग्रन्थ। एक सज्जनकी ओरसे ‘नमिराज' नामका उपपिछले अंकमें हमने 'मणिभद्र' उपन्यास न्यास देनेका भी विचार हुआ; परन्तु वह अब तक को इस वर्षके उपहारमें देनेकी सूचना दी थी; तैयार न हो सका, इस लिए उसके बदले मणिभद्र परन्तु पीछे वह विचार बदल गया और उसे पि- नामका जैन उपन्यास तैयार कराया गया। यह छले वर्षके ग्राहकोंके लिए 'नमिराज' के बद- सचित्र है । पाठक इसे भी पढ़कर प्रसन्न होगे। लेमें रखकर इस वर्षके ग्राहकोंके लिए 'मेवाड़- यह एक ऐसे धर्मात्मा और धनिक सज्जनकी ओरसे पतन' नामक नाटक तैयार कराया गया। दिया जाता है जो जनहितैषीके अतिशय प्रेमी यह नाटक ग्राहकोंकी सेवामें जा ही रहा है, इस हैं और जो आग्रह करने पर भी अपना नाम लिए इसकी प्रशंसा करना व्यर्थ है। पढ़नेसे पाठक प्रकाशित करना उचित नहीं समझते हैं : जैनस्वयं जान लेंगे कि कैसा अपूर्व ग्रन्थ है । पिछले हितैषी उनकी इस कृपाके लिए अतिशय वर्ष एक उपहार दिया जा चुका था। उसके बाद आभारी है। naweleasinue Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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