Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 99
________________ श्री वीतरागाय नमः । जैन ग्रन्थरत्नाकर कार्यालय - बम्बईका सूचीपत्र । खासकी छपाई हुई पुस्तकें | अनित्य भावना - श्रीपद्मनन्दि आचार्यका अनिपंचाशतमूल और उसका अनुवाद । अनुवाद बाबू उपमितिभवप्रपचा कथा -- ( दूसरा प्रस्ताव ) इसमें चतुर्गतिरूप संसारका वर्णन बड़ी खूबी के साथ किया गया है । मूल्य पाँच आने । कैशोरजी मुख्तारने हिन्दी कवितामें किया है । शोक दुःखके समय इस पुस्तकके पाठसे बड़ी शान्ति मिलती है । मूल्य डेढ़ आना । कर्नाटक- जैनकवि -- कर्नाटक देशमें जो नामी नामी जैन कवि हुए हैं उनका इसमें ऐतिहासिक अरहंतपासा केवली- पासा डालकर शुभ अशुभ परिचय दिया गया है । सब मिलाकर ७५ कवियोंका. जानने की रीति । मू० डेढ़ आना । इतिहास है । बड़े महत्त्वकी पुस्तक है । मूल्य लागत से भी कम आधा आना हैं । आत्मानुशासन - बड़ा ही उत्तम और उपदेशपूर्ण प्रन्थ है । इसका एक एक उपदेश, एक एक शिक्षा अमूल्य है । उनका हृदयपर बड़ा प्रभाव पड़ता है । यह एकबार पहले भी छपकर बिक चुका है, पर अबकी बार यह नये रूपमें छपाया गया है । पहले इसकी भाषा ढूंढाड़ी थी । पर अब यह नई हिन्दी भाषा में कर दिया गया है । इसे पढ़कर आत्मा बड़ी शान्ति लाभ करता है । बड़ा सुन्दर ग्रन्थ है । अबकी बार कीमत भी कम रक्खी गई है । सादी जिल्द १ ॥ ) पक्की जिल्द मू० दो रुपये । अंजनापवनंजय - खड़ी बोली में हिन्दीका सुन्दर काव्य, बढ़िया कागजपर मनोहर कव्हर सहित बहुत ही सुन्दरता के साथ छपवाया गया है । मूल्य ढाई "आने । Jain Education International इष्टछत्तीसी - अर्थसहित । इसमें पंच परमेष्टीके १४३ मूलगुणों का वर्णन और तीन चौवीसीके नाम 1 मूल्य आध आना । उपमितिभवप्रपंचा कथा - - ( प्रथमप्रस्ताव ) महात्मा सिद्धर्षिके अद्वितीय मूल ग्रन्थका शुद्ध हिन्दी अनुवाद है | अनुवाद बहुत ही अच्छा हुआ है । कठिन से कठिन विषयोंको सरलता से समझानेवाला यह अपूर्व ग्रन्थ है । काव्यका काव्य है, सिद्धान्तका सिद्धान्त है और संसारका एक कथारूप चित्रका चित्र मूल्य बारह आने । चरचाशतक चरचाशतक - - द्यानतरायजीका सरल हिन्दी भाषाटीका सहित । बहुत ही अच्छा छपा है । चार नकशे भी दिये हैं । मूल्य || | ) छहढाला -- दौलतरामकृत बड़े अक्षरों में छहढाला -- बुधजनकृत बड़े अक्षरों में ... छहढाला -- बावनअक्षरी द्यानतरायजी कृत जिनेन्द्र पंचकल्याणक - ( पंचमंगल ) अभिषेकपाठ सहित । मूल्य एक आना । जिनेन्द्र गुणानुवाद पच्चीसी – मूल्य - ) । जैनपदसंग्रह दूसरा भाग - इस दूसरे भाग में स्वर्गीय कविवर भागचंदजी कृत जितने पद हमको मिले वे सब छपे हैं। मूल्य चार आने । जैनपदसंग्रह पाँचवाँ कविवर बुधजनजीके २५० के है । बहुत शुद्धतापूर्वक छपाया है मूल्य छह आने । जैनविवाह विधि -- अबकी बार यह पुस्तक इस ढंगसे छपाई गई है कि मामूली पढ़ा लिखाआदमी इसके जरियेसे जैनविधिके अनुसार विवाह करा सकता है । प्रत्येक गृहस्थको यह पुस्तक मँगाकर रखना चाहिए। मूल्य पहले की अपेक्षा चौथाई अर्थात् सिर्फ तीन आने रक्खा 1 । भाग -- इस भाग में करीब पदोंका संग्रह तत्त्वार्थसूत्रकी बालबोधिनी भाषाटीकायह टीका जैनधर्मके विद्यार्थियों के लिए बनवाई गई For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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