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अङ्क २ ]
विषयों पर भी अपना प्रकाश डालता है । इस लिए इसे महामंत्र कहना चाहिए। नहीं मालूम इस महामंत्रके प्रभावसे समय समय पर कितनी कथायें, कितने व्रत, कितने नियम, कितने विधान, कितने स्तोत्र, कितनी प्रार्थनायें, कितने पूजा-पाठ, कितने मंत्र और कितने सिद्धान्त तक जैन साहित्य में प्रविष्ट हुए हैं, जिन सबकी जाँच और परीक्षा होनेकी जरूरत है । जाँचसे पाठकों को मालूम होगा कि संसारमें धर्मोकी पारस्परिक स्पर्धा और एक दूसरे की देखा देखी आदि कारणोंसे कितने काम हो जाते हैं और फिर वे कैसे आप्तवाक्यका रूप धारण कर लेते हैं । शान्ति-विधान और झूठा
भद्रबाहु -संहिता |
आश्वासन ।
( १८) इस संहिताके तीसरे खंड में - 'शांति' नामक १० वें अध्यायमें - रोग मरी और शत्रुओं आदिकी शांति के लिए एक शांति-विधानका वन देकर लिखा है कि, 'जो कोई राष्ट्र, देश, पुर, ग्राम, खेट, कर्वट, पत्तन, मठ, घोष, संवाह, वैला, द्रोणमुखादिक तथा घर, सभा, देवमंदिर बावड़ी, नदी, कुआँ और तालाब इस शांतिहोम - के साथ स्थापन किये जाते हैं वे सब निश्चयसे उस वक्त तक कायम रहेंगे जब तक कि आका शर्में चंद्रमा स्थित है । अर्थात् वे हमेशा के लिए, अमर हो जायँगे- उनका कभी नाश नहीं होगा |
यथाः
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'राष्ट्रदेशपुरग्रामखेटकर्वटपत्तनं ।
मठं च घोषसंवाहवेलाद्रोणमुखानि च ॥ ११५ ॥ इत्यादीनां गृहाणां च सभानां देववेखनाम् । वापीकूपतटाकानी सन्नदीनां तथैव च ॥ ११६ ॥ शांतिहोमं पुरस्कृत्य स्थापयद्दर्भमुत्तमं । आचंद्रस्थायि तत्सर्वे भवत्येव कृते सति ॥ ११७ ॥ १ शायद इसी लिए ग्रंथकर्त्ताने, अपने अन्तिम वक्तव्यमें, इस संहिताका ' महामंत्रयुता' ऐसा विशेषण दिया हो ?
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इस कथनमें कितना अधिक आश्वासन और प्रलोभन भरा हुआ है, यह बतलाने की यहाँ जरूरत नहीं है । परन्तु इतना जरूर कहना होगा कि यह सब कथन निरी गप्पके सिवाय और कुछ भी नहीं है । ऐसा कोई भी विधान नहीं हो सकता जिससे कोई कृत्रिम पदार्थ अपनी अवस्था विशेषमें हमेशा के लिए स्थित रह सके । नहीं मालूम कितने मंदिर, मकान, कुएँ बावड़ी, और नगर-ग्रामादिक इस शांति-विधानके साथ स्थापित हुए होंगे जिनका आज निशान भी नहीं है और जो मौजूद हैं उनका भी एक दिन निशान मिट जायगा । ऐसी हालत में संहिताका उपर्युक्त कथन बिल्कुल असंभव मालूम होता है और उसके द्वारा लोंगोको व्यर्थ - का झूठा आश्वासन दिया गया है। श्रुतकेवली जैसे विद्वानोंका कदापि ऐसा निःसार और गौरवशून्य वचन नहीं हो सकता । अस्तु; जिस शांतिविधानका इतना बड़ा माहात्म्य वर्णन किया गया है और जिसके विषयमें लिखा है कि वह अकालमृत्यु, शत्रु, रोग और अनेक प्रकारकी मरी तकको दूर कर देनेवाला है उसका परिचय पानेके लिए पाठक जरूर उत्कंठ होंगे । इस लिए यहाँ संक्षेपमें उसका भी वर्णन दिया जाता है । और वह यह है कि ' शांतिविधानके मुख्य तीन अंग है - १ शांतिभट्टारकका महाभिषेक २ बलिदान और ३ होम । इन तीनों क्रियाओंके वर्णनमें होममंडप, होमकुंड, वेदी, गंधकुटी और स्नानमंडप आदिके आकार - विस्तार, शोभा-संस्कार तथा रचना विशेषका विस्तृत वर्णन देकर लिखा है कि गंधकुटीमें शांतिभट्टारकका, उसके सामने सरस्वतका और दाहने बायें यक्ष-यक्षीका स्थापन किया जाय । और फिर, अभिषेक से पहले, भगवान् शांतिनाथकी पूजा करना ठहराया है। इस पूजनमें जल- चंदनादिकके सिवाय लोटा, दर्पण,
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