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अङ्क २]
अनुरोध।
जिनको न तत्त्व-ज्ञान हो कृतकार्य क्यों वे हों कभी। हो जाव तत्पर और सत्वर फूट-घटको फोड़ दो,
निज देशको पर-फेशनोंके जालमें न फँसाइए ।
हे कर्मवीरो! धर्मसे निज कर्मको दिखलाइए॥ निज बान्धवोंके कण्ठसे अपने गलेको जोड़ दो। अति स्वार्थ-रत दुखदायियोंसे शीघ्र नाता तोड़ दो,
(१२) अति हानिकर हैं शीघ्र मादक वस्तुओंको छोड़ दो ॥ कुछ काम दिखलाए बिना लम्बी न बात बनाइए। जिनमें बनी है एकता गणना उन्होंकी है यहाँ. हे कर्मवीरो ! धर्मसे निज कर्मको दिखलाइए॥ दुख, दैन्य फैले क्यों नहीं अति फूट फैली हो जहाँ ।
अन्यायसे निज टेक पर मरिए न. अब भी मानिए
निज हाथ चौपट देशको करिए न. अब भी मानिए॥ जो मन कहे, कहिए उसे, कहिए जिसे, करिए उसे, लड़कर परस्परमें नहीं द्वेषाग्निको भड़काइए। है जन्म-भूका ऋण उचित भरना अभी भरिए उसे। हे कर्मवीरो ! धर्मसे निज कर्मको दिखलाइए ॥ कुछ हाथ पैर हिलाइए क्या लाभ है बकवादसे, ऋषि-वंश हो डरिए सदा संसारके अपवादसे ॥ .
(१३) दुस्संगमें पड़ कर वृथा मत देशको बहकाइए।
सवंश हो तो हंसहीको चालसे चलिए सदा, हे कर्मवीरो ! धर्मसे निज कर्मको दिखलाइए ॥
पर गृध्रकी गतिसे न चलकर हाथको मलिए सदा । (१०)
बनिए विवेकी, देखिए नय-दृष्टि से कुछ तो भला, क्या थे, हुए क्या, सोचिए हम कौन हैं तुम कौन हो ?
निज हाथ कुत्तोंके लिए मत काटिए अपना गला ॥ कर्तव्य क्या है मानवोंका बोलिए क्यों मौन हो?
* पर वर्गके सुखके लिए निज वर्गको न सताइए। जैसे बने अपनी प्रतिष्ठाको बना रखिए सदा,
हे कर्मवीरो ! धर्मसे निज कर्मको दिखलाइए ।। अपमान-कारक कर्मसे मनको मना रखिए सदा ।।
(१४) . निज स्वत्वके शुभ तत्त्वको सबके लिए समझाइए। हे कर्मवीरो! धर्भसे निज कर्मको दिखलाइए। गिरते रहें यदि वारि-कण तो सर कभी भर जायगा..
उड़ते रहें यदि वारि कणतो सूख भी सर जायगा। (११)
जो आपके हैं नित्य वे जा मिल रहे हैं औरसे, क्या कोकिलोंसे बक भले हैं तनिक भी तो सोचिए, सत्ता न अपनी जाय मिट रहिए सदा उस तौरसे ॥ क्या रंगमें रक्खा हुआ है कुछ कभी तो सोचिए। जिस भाँति हो उस भाँति ही सबको सदा अपनाइए। तुमको नहीं क्या ज्ञान है अपने परायेका अभी, हे कर्मवीरो । धर्मसे निज कर्मको दिखलाइए॥
(१५) बन ब्रह्मचारी आप नित संयम नियमको कीजिए, पुरुषार्थ अपनेमें अलौकिक युक्तिसे भर लीजिए। फिर क्षेत्रमें भी कार्यके ऐसे उतरिए प्रीतिसे, ठोकर न पैरोंमें लगे यों कार्य करिए नीतिसे ॥
अति धीरतासे सिद्धि मिलती है, नहीं घबराइए । हे कर्मवीरो ! धर्मसे निज कर्मको दिखलाइए ॥
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