Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 87
________________ अङ्क २ ] अत एव मेरी धृष्टता यह ध्यान में मत दीजिए, कृपया इसे स्वीकार कर उपकृत्य मुझको कीजिए । विविध-प्रसङ्ग । हमारी समझमें यह कार्य मुनिजीके पदके योग्य नहीं । शास्त्रोंमें काव्य-चौर्यकी बहुत निन्दा की है । कविता में छन्दोभंग आदि दोष भी हैं, फिर भी उपदेशकी बातें अच्छी हैं, उनसे पढ़नेवाले कुछ न कुछ लाभ अवश्य उठायँगे । मुनिमहाराज कट्टर श्वेताम्बर जान पढ़ते हैं । आप एक जगह दिगम्बरों और ढूँढ़ियोंको भी चलते चलते दो चार बुरी भली सुना गये हैं । दिगम्बरियोंके लिए आप फरमाते हैं:निकला दिगम्बरपन्थ भी तो है हम्हीं में से यहाँ, गुरु भद्रबाहु से प्रथम था इनका उद्भव ही कहाँ ? "जैसे कि आर्यसमाज निकला देखते सबके यहाँ, पर अल्पसे ही कालमें फैला नहीं है वो कहाँ ? इसी प्रकरणमें आप स्थानकवासियोंके विरुमें भी कुछ कहकर कहते हैं • मतपक्ष करना आज इसको (लोग) मान बैठे धर्म हैं । मुनि महाराज शायद श्वेताम्बर मतके पक्ष करने को 'मतपक्ष ' न मानते होंगे, अत एव आपकी इस मानता के लिए धन्यवाद ! नीचे लिखी पुस्तकें धन्यवादपूर्वक स्वीकार की जाती है: r १ रोजगार, २ घरका वैद्य, ३ स्त्रीशिक्षा, संसारकी आकांक्षा - प्रकाशक, पं० रुद्रदत्त शर्मा, चंदौसी ( यू. पी. ) । ५ काव्योपवन-सुमन पुष्पाञ्जली, ६ भाषाश्रुत-बोध, ७ चतड़ा चौथचातुरी, ८ भाषापिङ्गल, ९ गानेकी चन्द चीजे, द्वितीय तृतीय भाग - लेखक और प्रकाशक, बाबू माँगालील गुप्त छावनी नीमच । १० गिरनारमाहात्म्य ( विधान पूजन ) - सम्पा दक और प्रकाशक, बाबू बशीघर जैन मास्टर, ललितपुर, (झाँसी)। Jain Education International _११ दलजीतसिंह — नाटक — ले०, बाबू कृष्णलाल वर्मा । प्रकाशक, प्रेममाला कार्यालय, गोहाना (रोहतक) १२ आस्तिकप्रकाश–प्र० पं०, कुँवरसेन शर्मा, हनुमान गली, हाथरस ( अलीगढ़ ) । १३ नवतत्त्व ( हिन्दीभाषानुवाद सहित ) - प्र०, आत्मानन्दजनपुस्तक प्रचारक मण्डल, नौघरा, देहली । १४ श्रीपालचरित्र ( द्वितीय संस्करण ) - ले ०. मास्टर दीपचन्दजी और प्रकाशक, मूलचन्द कसनदास कापड़िया, सूरत । १५ श्रावकधर्मदर्पण, १६ शलिरक्षा प्रथम और द्वितीय भाग - प्र०, कुँवर मोतीलाल राँका, जैनज्ञानवर्द्धिनी पाठशाला, व्यवर ( अजमेर) । १६ जैनइतिहास, १७ जैनतत्त्वमीमांसा - प्र०, आत्मानन्द - जैन- ट्रेक्ट-सुसाइटी, अंबाला सिटी । १७ छठवीं वार्षिक रिपोर्ट - जैनसिद्धान्तविद्यालय, मोरेना । १९ बिजनौर | षष्ठ वार्षिक रिपोर्ट — जैनबोर्डिंग हाउस, २० बीसवीं वार्षिकरिपोर्ट — दिगम्बरजैनमहासभा, सहारनपुर । विविध प्रसङ्ग । १ स्याद्वादविद्यालय और जैनमित्र । जैन मित्रके सम्पादक महाशय जैन संस्था 1 'ओंके इतने बड़े शुभचिन्तक हैं कि उस शुभ- चिन्तनामें उन्हें ' चुप्पं कुरु' की नीतिक अत्यधिक पक्षपाती बन जाना पड़ा है । वे चाहते हैं कि किसी भी संस्था के दोष न निकाले जायँ, क्योंकि ऐसा करनेसे लोग सहायता देना बन्द कर देंगे और संस्था को हानि पहुँचेगी । अवश्य ही यह शुभ चिन्तना है, पर इसका परिणाम संस्थाओंके लिए वही होगा जो अधिक लाड़से पाले जानेवाले और सदा अपनेको सर्वगुणसम्पन्न समझनेवाले बालकोंका होता है। जैनहि For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116