Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 77
________________ स्नान। अङ्क २] स्नानके-विषयकी और भी कई बातें जान बिजलीसे रक्षा करनेकी क्षमता घट जाती है लेना आवश्यक है। बहुतोंका विश्वास है कि और इस प्रकार शरीरमें रहनेवाली बिजलीकी स्नान करना ही न चाहिए अथवा कभी कभी क्षमताका क्षय होता है । हमारी समझमें वैज्ञाबहुत दिनोंके बाद करना चाहिए । वैज्ञानिकोंका निकोंका सबके विषयमें यह कहना भूल है । कहना है कि चमड़ा हमारे मांसके पट्टों और क्योंकि हमने देखा है कि तन्दुरुस्त आदमीको भीतरी यंत्रका आवरण है। बाहरी ठंड और गर्मीसे स्नानसे कोई हानि नहीं पहुँचती। यदि पहुँचती शरीरकी रक्षा चर्म द्वारा ही की जा सकती है। यही भी होगी तो इतनी कम कि उसको हानि कहना उसका प्रधान उपाय है। इस लिए धर्मशक्तिका ही मूर्खता है । हाँ, कमजोर आदमियोंको नाश न होने देना चाहिए। इसके नाश होनेसे अधिक हानि पहुँच सकती है। सारा शरीर रोगग्रस्त हो सकता है । स्नान करनेसे हमारे चर्मके नीचे छोटी छोटी ग्रंथियाँ हैं । चर्मकी क्षमता नष्ट हो जानेका भय है, अत एव उनमेंसे तैलकी भाँति एक चिकना पदार्थ निकल स्नान न करना चाहिए। रही सफाईकी बात सो कर चर्मको चिकना रखता है । चर्मके चिकने अन्य उपायों द्वारा शरीर साफ रक्खा जा सकता रहनेसे ही शरीरके तापकी रक्षा होती है । यह हैं। हमारे देशके बंगालवासी कविराज स्नान चिकनाहट ही शरीरके तापकी रक्षा करता है। करनेके बहुत विरुद्ध हैं । वे रोगीको स्नान करनेकी आज्ञा बड़ी कठिनाईसे देते हैं । कुछ गिरने लगता है और शरीरको ठंड मालूम हान स्नान द्वारा इस क्षमताको नष्ट करनेसे शरीर कविराज तो स्वयं भी स्नान नहीं करते । पर लगती है । तैल मल कर स्नान करनेसे यह स्नान करनेसे अपकार होता है, यह बात अभी असुविधा बहुत कुछ दूर हो जाती है । इस तक सिद्धि नहीं हुई। लिए दैनिक स्नान करनेवालोंको तैलकी मालिश हम लोग ग्रीष्म-प्रधान देशमें रहते हैं । यहाँ अवश्य करना चाहिए। स्नान करना अच्छा मालूम होता है । हमारे अनेक आदमी जल-वायु बदलनेके लिए विचारमें यहाँ स्नान न करनेमें अनेक बुराइयाँ समद्र किनारेके नगरोंमें चले जाते हैं और समुपैदा हो सकती हैं। स्नान न करनेसे अनेक , में स्नान किया करते हैं। समुद्रमें स्नान करनेबीमारियाँ पैदा होने का डर है । परंतु तो भी , I से शरीर बलिष्ठ होता है और आराम मिलता' दुर्बल मनुष्योंको जो हाल ही रोगसे उठे हो, है। इसका कारण यह है कि समुद्रके पोनीम अधिक स्नान न करना चाहिए । ऐसे आदमियों- बिजलीका तेज ( Majnetic power ) बहुत को चाहिए कि वे अपने स्नान करने अथवा न अथवान ज्यादा होता है । इस लिए समुद्रका पानी शरीकरनेके विषयमें किसी वैद्यसे निश्चय करा लेवें । रको हानि न पहुँचा कर लाभ पहुंचाता है । __स्नानके विरुद्ध वैज्ञानिक और भी अनेक गंगा और जमना मदीके पानीमें भी यही गुण बातें कहते हैं । उनका कहना है कि हमारा चर्म है। प्रातःकाल ८ बजेसे १० बजे तक समुद्रमें बिजली और तापसे हमारे शरीरकी रक्षा करता स्नान करना चाहिए । समुद्रमें अधिक तैरना है। क्योंकि चर्म बिजलीके तेज और तापको अथवा पानीमें रहना अच्छा नहीं है । ऐसा परिचालित नहीं होने देता । पानी बिजलीका करनेसे स्नान करनेका फायदा नष्ट हो जाता है परिचालक है, इस लिए पानी लगनेसे शरीरकी और शरीर कमजोर हो जाता है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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