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जैनहितेषी
[भाग १३
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किये बिना नहीं रह सकते । पुस्तक बढ़िया दिये जाते हैं, परन्तु वास्तवमें ये सब श्वेताम्बर कागज पर सुन्दरताके साथ छपी है। धर्मवालोंके हैं और इन्हींकी मालिकीके हैं । इन
२ कृपारसकोश । लेखक और प्रकाशक पर्वतोंके नीचे, ऊपर, आसपास, यात्राके सभी पूर्वोक्त मुनि महाशय और सभा । डिमाई अठ- स्थानोंमें और पूजास्थानोंमें कोई किसी प्रकारकी पेजी साइज । पृष्ठ संख्या ८० । मूल्य एक रुपया। जीवहिंसा न करे ।" इसके बाद हीरविजयजी श्वेताम्बर सम्प्रदायमें हीरविजयसूरि नामके दिल्लीसे चले गये और बादशाहके पास उपाएक बहुत ही प्रसिद्ध विद्वान् हो गये हैं। वे ध्याय शान्तिचन्द्रजीको रखते गये । उपाध्यायजी बादशाह अकबरके समसामयिक थे। उनकी अच्छे विद्वान थे। ये भी बादशाहको दयालु साधुता और विद्वत्ताकी कीर्ति सुनकर अकबरने बनानेका प्रयत्न करते रहे । इसका फल यह उनके दर्शन करनेकी इच्छा प्रकट की और तब हुआ कि वर्ष भरके खास खास हिन्दू तथा मुसहीरविजयजी बादशाहसे दो बार मिले । बाद- लमानोंके इतने तेहवारों पर जीववध न करनेकी शाहने उनकी बड़ी खातिर की और उनसे वार्ता- आज्ञा दे दी कि उन सब दिनोंकी संख्या छह लाप करके बहुतसा ज्ञान प्राप्त किया । एक तो महीनेके लगभग हो जाती है । जिजिया करके अकबर स्वयं ही प्रजाको प्रसन्न रखनेवाला बाद- उठा देनेमें भी ये ही उपाध्यायजी कारण समझे शाह था, दूसरे सूरिजीका भी उस पर बहुत जाते हैं। हीरविजयजी और अकबरके इस परिचय प्रभाव पड़ा। इस लिए उसने सूरिजीकी प्रेरणासे आदिके सम्बन्धमें श्वेताम्बर विद्वानोंने जगद्गुरुकैदखानोंसे तमाम कैदी मुक्त कर दिये,पीजड़ों- काव्य, हीरसौभाग्य महाकाव्य, विजयप्रशस्तिमेंके तमाम पक्षी छुड़वा दिये, डाबर नामके ताला- काव्य, विजयमाहात्म्य, आदि कई ग्रन्थ लिखे बमें मछली पकड़नेके जाल डालनेके लिए मनाई हैं। यह 'कृपारसकोश' भी उन्हीमेंका एक है। इसके कर दी और पर्युषणके आठ दिनोंमें तथा दूसरे की पूर्वोक्त उपाध्याय शान्तिचन्द्रजी हैं। ग्रन्थ चार दिनोंमें जीव-वध न होने पावे, इसके लिए १२८ संस्कृत पद्योंमें समाप्त हुआ है। इसमें गुजरात, मालवा, अजमेर, दिल्ली, फतहपुर और पहले खुरासान काबुल आदिका वर्णन, फिर लाहौरके सूबों पर फरमान (आज्ञापत्र) लिख बाबर और हुमायूँकी प्रशंसा और उसके बाद दिये । दूसरी बारकी मुलाकातमें बादशाहने एक अकबरका जन्मवृत्तान्त कहा गया है । इसके फरमान और लिख दिया जिसका अभिप्राय यह है बाद अकबरके रूप, शौर्य, दानशीलता, कि “सिद्धाचल, गिरनार, तारंगा, केशरिया और दयाप्रवणता आदि गुणोंकी प्रशंसा की गई है। आबूके पहाड़ों पर, जो गुजरातमें हैं, तथा राज- ग्रन्थ अकबरको प्रसन्न करनेके लिए रचा गया गृहीके पाँच पहाड़ और सम्मेदशिखर था, इस लिए आश्चर्य नहीं जो इसमें उसकी या पार्श्वनाथ पहाड़, जो बंगालमें है, तथा और अति प्रशंसा की गई हो । एक श्लोक देखिए:भी जैन श्वेताम्बरसम्प्रदायके धर्मस्थान जो कन्ये कासि कृपा कुतोऽसि विधुरा राजा कुमारो गतहमारे अधिकारके देशोंमें हैं वे सभी जैन श्वेता- स्तत्किं हिंसकमानवैरहरहर्गाढं प्रमुष्टास्म्यहम् । म्बर सम्प्रदायके आचार्य हीरविजयसूरिके स्थानाय स्पृहयामि तद्भज शुभे भूभामिनीभोगिर्न स्वाधीन किये जाते हैं, जिससे ये शान्तिपूर्वक संप्रत्येकनृपं चिरादकबरं येनासि न व्याकुला॥११३॥ इन पवित्र स्थानोंमें अपनी ईश्वरभाक्त किया करें। अर्थात्-हे कन्ये, तू कौन है ? मैं दया हूँ। यद्यपि इस समय ये स्थान हीरविजयसूरिको दुखी क्यों है ? इस लिए कि राजा कुमारपाल
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