Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 54
________________ ५२ जैनहितैषी भाग १३ इस पद्यमें, मूर्ख गाड़ीवानके कारण गाड़ीसे इससे यह भी सूचित होता है कि ये दोनों पद्य ही किसीको हानि पहुँचने पर, गाड़ीमें बैठे हुए उन नहीं बल्कि संभवतः ये दोनों अध्याय ही भिन्न स्त्री-पुरुषोंको भी धनदंडका पात्र ठहराया है भिन्न व्यक्तियों द्वारा रचे गये हैं। जो बेचारे उस गाड़ीके स्वामी नहीं है और न (३) भद्रबाहुसंहिताके 'चंद्रचार' नामक जिनको उक्त गाड़ीवानके मूर्ख या कुशल २३ वें अध्यायमें लिखा है कि — श्वेत, रक्त, होनेका कोई ज्ञान है। समझमें नहीं आता कि पीत तथा कृष्ण वर्णका चंद्रमा यथाक्रम अपने उक्त नियमके अनुसार गाड़ीमें बैठे हुए ऐसे वर्णवालेको (क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और मुसाफिरोंको कौनसे अपराधका अपराधी माना शद्रको) सुखका देनेवाला और विपरीत जाय ? अस्तु; इस प्रकारके विरुद्ध कथनोंसे इस वर्णके लिए भयकारी होता है । यथाःग्रंथके कई अध्याय भरे हुए हैं । मालूम होता। हाता खेतो रक्तश्च पीतश्च कृष्णश्चापि यथाक्रमं ॥ .. है कि ग्रंथकर्ताको इधर उधरसे वाक्योंको उठाकर रखनमें आगे पीछेके कथनोंका कुछ भी सवर्ण सुखदश्चन्द्रो विपरीतं भयावहः ।। १६ ॥ ध्यान नहीं रहा; और इससे उसका यह संपर्ण परन्तु तीसरे खंडके उसी 'ऋषिपुत्रिका ' दंड-विषयक कथन कुछ अच्छा व्यापक और नामके चौथे अध्यायमें यह बतलाया है कि सिलसिले वार भी नहीं बन सका। 'समानवर्णका चंद्रमा समान वर्णवालेको भय . (२) दूसरे खंडके 'उत्पात' नामक १४ वें .और पीडाका देनेवाला होता है ' 'कृष्णचंद्रमा अध्यायमें लिखा है कि 'यदि बाजे बिना बजाये : शूद्रोंका विनाश करता है। ' यथाःहुए स्वयं बजने लगे और विकृत रूपको धारण "समवण्णो समवणं भयं च पार्ड तहा णिवेदेहि। करें तो कहना चाहिए कि छठे महीने राजा लक्खारसप्पयासो कुणदि भयं सब्वदेसेसु ॥ ३६ ।। बद्ध होगा (वंदिगृहमें पड़ेगा ) और अनेक किण्हो सुद्दविणासइ"चंदो ॥ ३८ ॥ प्रकारके भय उत्पन्न होंगे। यथाः चंद्रफलादेश-सम्बंधी यह कथन पहले कथनके " अनाहतानि तूर्याणि नदन्ति विकृति यथा। बिल्कुल विरुद्ध है-वह सुख होना कहता षष्ठे मासे नृपो बद्धो भयानि च तदा दिशेत् ॥१६५॥ है तो यह दुःख होना बतलाता है-समझमें - परंतु तीसरे खंडके ' ऋषिपुत्रिका ' नामक नही आता नहीं आता कि ऐसी हालतमें कौन बुद्धिमान चौथे अध्यायमें इसी उत्पातका फल पाँचवें इन कथनोंको केवली या श्रुतकेवलीके वाक्य महीने राजाकी मृत्यु होना लिखा है। यथा:- मा. न मानेगा? वास्तवमें ऐसे पूर्वापर-विरुद्ध कथन किसी " अह णंदितूरसंखा वजंति अणाहया विफुटंति। " भी केवलीके वचन नहीं हो सकते। अस्तु। ये तो अह पंचमम्मि मासे णरवइमरणं च णायब्बं ॥९॥* हुए पूर्वोपर-विरुद्ध कथनोंके नमूने । अब आगे .. इससे साफ प्रगट है कि ये दोनों पद्य पर्वापर- दूसरे प्रकारके विरुद्ध कथनोंको लीजिए। विरोधको लिये हुए हैं और इस लिए इनका मिथ्या क्रियायें। निर्माण किसी केवली द्वारा नहीं हुआ। साथ ही, (४) संहिताके द्वितीय खंड-विषयक *संस्कृतच्छायाः अध्याय नं० २७ में लिखा है कि 'प्रीति' 'अथ नंदितूरशंखा नदन्ति अनाहताः स्फुटति। और सुप्रीति ' ये दो क्रियायें पुत्रके जन्म अथ पंचमे मासे नरपतिमरणं च ज्ञातव्यं ॥ ५३॥ होने पर करनी चाहिए। साथ ही, जन्मसे पहले Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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