Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 29
________________ अङ्क १ ] छप चुका है । यह संवत् १८६५ में समाप्त हुआ है। हिन्दी - जैनसाहित्यका इतिहास । २८ क्षमाकल्याण पाठक । इन्होंने संवत् १८५० में जीवविचारवृत्तिकी रचना की । साधु प्रतिक्रमणविधि, श्रावकप्रतिक्रमणविधि, सुमतिजिनस्तवन आदि और भी कई ग्रन्थ इनके रचे हुए हैं। पिछला स्तवन छप गया है। रचना अच्छी है। Jain Education International २७. ७ भक्तामरकथा, ८ आराधनासार, ९ धर्मपरीक्षा, १० यशोधरचरित्र, ११ योगसार, १२ पाण्डवपुराण, १३ समाधिशतक, १४ सुभाषितरत्न सं-दोह, १५ आचारसार, १६ नवतत्त्व, १७ गोतमचरित्र, १८ जम्बूचरित्र, १९ जीवंधररित्र, २० भविष्यदत्तचरित्र, २१ तत्त्वार्थसारदीपक, २२ श्रावकप्रतिक्रमण, २३ स्वाध्यायपाठ, विविध भक्तियाँ और विविधस्तोत्र | विजयकीर्ति – ये नागौर की गद्दी भट्टारक थे। इन्होंनें सं० १८२० में श्रेणिकचरित्र छन्दोवद्धकी रचना की है। बीसवीं शताब्दी | १ सदासुख । इस शताब्दी के पुराने ढंगके लेखकों में सदासुखजी बहुत प्रसिद्ध हैं । इनका रत्नकरण्ड श्रावकाचार बहुत बड़ा लगभग १५-१६ हजार श्लोक प्रमाण गयग्रन्थ है । जैनसमाजमें इसका बहुत अधिक प्रचार है। दो बार छप चुका है। एक डेड़ सौ श्लोकके इसी नामके मूल ग्रंथका यह विशाल भाष्य है । एक प्रकारसे इसे स्वतंत्र ग्रन्थ कहना चाहिए । इनका दूसरा ग्रन्थ अर्थप्रकाशिका है। यह भी लगभग उतना ही बड़ा है । यह तत्वार्थसूत्रका भाष्य है । . गद्यमें है । भगवती आराधना की टीका भी आपने लिखी है जो २० हजार होगी। यह विक्रम संवत् १९०८ में बनी है । बनारसीकृत नाटक समयसाकी टीका, नित्यपूजाटीका और अकलंका की टीका भी आपकी बनाई हुई है । २ पन्नालाल चौधरी । संस्कृत ग्रन्थोंके ये बड़ेभारी अनुवादक हुए हैं। इन्होंने ३५ ग्रन्थोंकी वचनिकायें ( गद्यानुवाद) लिखी हैं जो प्रायः सब ही उपलब्ध हैं: - १ वसुनंदिश्रावकाचार, २ सुभाषितार्णव, ३ प्रश्नोत्तर श्रावकाचार, ४ ५ मुनि आत्माराम । ये श्वेताम्बर सम्प्रदायजिनदत्तचरित्र, ५ तत्त्वार्थसार, ६ सद्भाषितावली, के बहुत ही प्रसिद्ध विद्वान् हुए हैं । इनका जीवन ३ भागचन्द्र । ये ईसागढ़ ( ग्वालियर ) के रहनेवाले ओसवाल थे, पर दिगम्बरसम्प्रदाय के अनुयायी थे । बहुत अच्छे विद्वान थे । संस्कृत और भाषा दोनोंके कवि थे । ज्ञानसूर्योदय, उपदेशसिद्धान्तरत्नमाला ( षष्टिशतप्रकरण ), अमितगतिश्रावकाचार, प्रमाणपरीक्षा ( न्याय), और नेमिनाथपुराण, इतने ग्रन्थोंकी आपने गद्यटीकायें लिखी हैं जो प्रायः उपलब्ध हैं । आपकी कई रचनायें संस्कृतमें भी हैं। आपके पदमजनोंका संग्रह छप चुका है। छ कविता है । ४ दौलतराम । ये सासनीनिवासी पल्लीवाल थे । सुनते हैं, छीपीका काम करते थे; परन्तु बहुत अच्छे विद्वान थे । गोम्मटसार सिद्धान्त के अच्छे मर्मज्ञ समझे जाते थे । आपका बनाया हुआ एक छहढाला नामका सुन्दर पयग्रन्थ है, जो कमसे कम ७-८ बार छप चुका है। जैनपाठशालाओंमें पाठ्यपुस्तक है । इसमें जैनधर्मका सार भरा हुआ है । सर्वथा स्वतंत्र है । इसके सिवाय आपके बनाये हुए बहुतसे पद और स्तवन है जिनमेंसे लगभग १२५ का संग्रह प्रकाशित हो चुका है। चार बार छप चुका है। पदरचना भाषा और भाव दोनोंकी दृष्टि अच्छी है । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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