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अङ्क १ ]
१७ महाचन्द्र । महापुराण संस्कृत - प्राकृत और भाषा में, सामायिकपाठ, फुटकर संस्कृत और भाषा के पद ।
हिन्दी - जैन साहित्यका इतिहास ।
१८ मिहिर चन्द्र । ये सुनपत (दिल्ली) के रहनेवाले थे। संस्कृत और फारसीके अच्छे विद्वान् थे । आपने सज्जनचित्तवल्लभ काव्यकी संस्कृत टीका और हिन्दी पद्यानुवाद बनाया है जो छप चुका है । कविता अच्छी है। शेख सादी के सुप्रसिद्ध काव्यद्वय गुलिस्तां और बोस्तांका हिन्दी अनुवाद भी आपका किया हुआ है जो एक बार छप चुका है । सुनते हैं, और भी आपकी कई हिन्दी रचनायें हैं ।
१९ हीराचन्द्र अमोलक । ये फलटण जिला सताराके रहनेवाले हूंबड़ वैश्य थे । आपकी मातृभाषा हिन्दी न थी तो भी आपने हिन्दीमें अनेक अच्छे पद बनाये हैं जो छप चुके पंचपूजा भी आपकी बनाई हुई है ।
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२० शिवचन्द्र ( दिल्लीवाले भट्टारक के शिष्य ) । नीतिवाक्यामृत, प्रश्नोत्तर श्रावका - चार और तत्त्वार्थसूत्रकी वचनिकायें ।
२१ शिवजीलाल ( जयपुरनिवासी ) । रत्नकरण्ड, चर्चासंग्रह, बोधसार, दर्शनसार, अध्यात्मतरंगिणी आदि अनेक ग्रन्थोंकी वचनि. कायें और तेरहपंथखण्डन ।
२२ स्वरूपचन्द् । मदनपराजयवचनिका, त्रैलोक्यसार छ० आदि ।
वर्तमान समय के परलोकगत लेखक ।
१ राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द | ये महाशय सं० १८८० में उत्पन्न हुए और १९५२ में इनका स्वर्गवास हुआ । श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय के आप अनुयायी थे । आप शिक्षा विभाग के उच्च कर्मचारी थे और राजा तथा सीआई. ई. की उपाधियोंसे विभूषित थे । वर्तमान खड़ी हिन्दीके आप जन्मदाता समझे जाते हैं ।
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भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्रजी आपको अपना गुरु मानते थे । उन्होंने अपना मुद्राराक्षस नाटक आपको ही समर्पित किया था । आप हिन्दीके बड़े पक्षपाती थे। आपकी ही दयासे शिक्षाविभागसे हिन्दी का दर्शनिकाला होता होता रह गया । शिक्षाविभागके लिए आपने हिन्दीकी अनेक पुस्तकें लिखी हैं । उनमें इतिहास तिमिरनाशक बहुत प्रसिद्ध है । आपके धार्मिक विचार बहुत स्वतंत्र थे । जैनसमाजको आपका अभिमान है ।
२ बाबू रतनचन्द्र वकील | आप इलाहाबाद के रहनेवाले खण्डेलवाल जैन थे। बी. ए. एल एल. बी. और वकील थे । अभी कुछ ही वर्षो पहले आपका स्वर्गवास हुआ है । आप हिन्दी के अच्छे लेखक थे । आपका नूतनचरित्र प्रयागके इंडियन प्रेसने प्रकाशित किया है । न्यायसभा नाटक, भ्रमजालनाटक, चातुर्थार्णव, वीरनारायण, इन्दिरा, हिन्दी-उर्दूनाटक, आदि कई ग्रन्थ आपके बनाये हुए हैं जो प्रकाशित हो चुके हैं । ' भ्रमजाल ' आदि अँगरेजीसे अनुवादित हैं, कुछ स्वतंत्र हैं और कुछ आधार लेकर लिखे गये हैं ।
३. बाबू जैनेन्द्रकिशोर । आप आरके एक जमींदार थे। अग्रवाल जैन थे। आराकी नागरीप्रचारिणी सभा और प्रणेतृसमालोचक सभा के उत्साही कार्यकर्ता थे | हिन्दीके सुलेखक और सुकवि थे । आपकी बनाई हुई खगोलविज्ञान, कमलावती, मनोरमा उपन्यास आदि कई पुस्तकें छप चुकी हैं। जैनकथाओंके आधारसे आपने कई नाटक और प्रहसन लिखे थे जिनमें से ' सोमासती' व्यंकटेश्वर प्रेससे प्रकाशित हो चुका है, शेष सब अमुद्रित हैं । आपने कई वर्षातक हिन्दी जैनगजटका सम्पादन किया था । कोई ६-७ वर्ष हुए, आपका देहान्त हो गया
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