Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 22
________________ २० जैनहितषी [भाग १३ तोंकी ३१ जातियोंका इतिहास दिया है । इसके जिसका संक्षिप्त नाम 'जयसुत ' ( जयसिंहके पहले भागमें पहले तो एक एक परगनेका इति- पुत्र ) लिखा है । उस समय ये उदयपुरमें थे:हास लिखा है । उसमें यह दिखाया है कि संवत सत्रासै पिच्याणव, परगनेका वैसा नाम क्यों हुआ, उसमें कौन कौन भादव सुदि वारस तिथि जानव । राजा हुए, उन्होंने क्या क्या काम किये और मंगलवार उदैपुरमाहीं, वह कब और कैसे जोधपुरके अधिकारमें आया। पूरन कीनी संसै नाहीं॥ फिर प्रत्येक गाँवका थोड़ा थोड़ा हाल दिया है आनंदसुत जयसुतकौ मंत्री, कि वह कैसा है, फसल कौन कौन धान्योंकी जयको अनुचर जाहि कहै। होती है, खेती किस किस जातिके लोग करते सो दौलत जिनदासनि-दासा, हैं, जागीरदार कौन हैं, गाँव कितनी जमाका है, जिनमारगकी शरण गहै । पाँच वर्षोंमें कितना कितना रुपया बढ़ा है, हरिवंशपुराणकी रचनाके समय जयपुरमें तालाब नाले और नालियाँ कितनी हैं, उनके इर्द रत्नचन्द्रजी दीवान थे, ऐसा उक्त पुराणमें उल्लेख गिर्द किस प्रकारके वृक्ष हैं । इत्यादि । यह भाग है। उसमें यह भी लिखा है कि इस राज्यके कोई चारसौ पाँचसौ पत्रोंका है । इसमें जोध- मंत्री अकसर जैनी होते हैं। रायमल्ल नामक एक पुरके राजाओंका इतिहास राव सियाजीसे महा- धर्मात्मा सज्जन जयपुरमें थे । उनकी प्रेरणासे राजा बड़े जसवन्तसिंहजीके समयतकका है । दौलतरामजीने आदिपुराण,पद्मपुराण और हरिवंशदूसरे भागमें अनेक राजपूत राजाओंके इतिहास पुराणकी वचनिकायें या गद्यानुवाद लिखे हैं । हैं । यह ग्रन्थ अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ हरिवंशपुराणकी वचनिकाके लिए तो उन्होंने है । यदि कोई जैन धनिक इसे प्रकाशित करा मालवेसे पत्र लिखकर प्रेरणा की थी । वे मालदेवे, तो बड़ा लाभ हो । मूता नेणसी इस ग्रन्थको वेको किसी कार्यके लिए गये थे। वहाँ भाषा लिखकर जैनसमाजके विद्वानोंका एक कलंक धो पद्मपुराण और आदिपुराणसे लोगोंका बहुत गये हैं कि ये देशके सार्वजनिक कार्योंसे उपेक्षा उपकार हो रहा था, यह देख उन्होंने हरिवंरखते हैं। शपुराणकी भी वचनिका बनाईजानेकी आवश्य१८ दौलतराम । ये बसवाके रहनेवाले थे कता समझी। इससे उनका भाषाप्रेम प्रकट होता और जयपुरमें आ रहे थे । इनके पिताका नाम है । सचमुच ही जैनसमाजको इन ग्रन्थोंका आनन्दराम था। इनकी जाति खण्डेलवाल और भाषानुवाद हो जानेसे बहुत ही लाभ हुआ है । मोव काशलीवाल था । ये राज्यके किसी बड़े जैनधर्मकी रक्षा होनेमें इन ग्रन्थोंसे बहुत सहायता पद पर थे । हरिवंशपुराणकी प्रशस्तिमें मिली है। ये ग्रन्थ बहुत बड़े बड़े हैं। हरिवं. लिखा है: शपुराणकी वचनिका १९ हजार श्लोकोंमें और सेवक नरपतिको सही, पद्मपुराणकी लगभग २० हजार श्लोकोंमें हुई नाम सु दौलतराम। . . है । आदिपुराण इससे भी बड़ा है । वचनिका तानै यह भाषा करी, बहुत सरल है । केवल हिन्दीभाषाभाषी जपकर जिनवर नाम ॥२५॥ प्रान्तोंमें ही नहीं, गुजरात और दक्षिणमें भी ये .. संवत् १७९५ में जब इन्होंने क्रियाकोश ग्रन्थ पढ़े और समझे जाते हैं। इनकी भाषामें लिखा था, तब ये किसी राजाके मंत्री थे ढूंढारीपन है, तो भी वह समझ ली जाती है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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