Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 21
________________ अङ्क १ ] हिन्दी - जैनसाहित्यका इतिहास । १९ ग्रन्थका पद्यानुवाद है । कवि अपना परिचय इस सत्त्व नहीं है पर इन्होंने बड़े बड़े ग्रन्थोंका प्रकार देता है: परपाद कर डाला है । इनकी तमाम रचनाकी लोकसंख्या ५०-६० हजारसे कम न होगी । इन्होंने हरिवंशपुराण संवत् १७८० में, पद्मपुराणं १७८३ में और उत्तरपुराण १७९९ में बनाया है । धन्यकुमारचरित्र, व्रतकथाकोश, जम्बूचरित्र, और चौवीसी पूजापाठ भी इन्हीं के बनाये हुए हैं । बम्बई मंदिरमें खुशालचन्दजीका बनाया हुआ एक यशोधरचरित्र है, जो संवत् १७८१ में बना है। मालूम नहीं, इसके कर्त्ता खुशालचन्द हरिवंश आदिके कर्त्तासे भिन्न हैं यावे ही हैं । इन्होंने अपनेको सुन्दरका पुत्र लिखा है और दिल्ली शहरके जयसिहपुरा में रहकर ग्रन्थ बनाया है । छन्दोबद्ध सद्भाषितावली भी इन दोमेंसे किसी एककी बनाई हुई है जो संवत् १७७३ में बनी है । 1 कविता मनोहर खंडेलवाल सोनी जाति, मूलसंघी मूल जाकौ सांगानेर वास है । कर्मके उदय धामपुर मैं वसन भयौ, सबसौं मिलाप पुनि सज्जनको दास है ॥ व्याकरण छंद अलंकार कछु पढ्यौ नाहिं भाषा मैं निपुन तुच्छ बुद्धिकौं प्रकास है । बाई दाहिनी कछू समझे संतोष लीयै, जिनकी दुहाई जाऊँ जिनही की आस है ॥ कविता साधारण है । कोई कोई पय बहुत चुभता हुआ है । १४ जोधराज गोदीका । इनका बनाया हुआ' सम्यक्त्वकौमुदी' नामका ग्रन्थ है । उसके अन्तमें इन्होंने अपना परिचय इस प्रकार दिया है: अमर पूत जिनवर भगत, जोधराज कवि नाम । बासी सांगानेरकौ, करी कथा सुखधाम ॥ संवत सत्रह सौ चौईस, फागुन वदि तेरस सुभदीस । सुकरवार संपूरन भई, 1 कथा समकित गुन उई ॥ इसकी रचना संस्कृत' सम्यक्त्वकौमुदी' के आधारसे की गई है । इसमें सब मिलाकर ११७८ दोहा चौपाई हैं । कविता साधारण है । इनके बनायेहुए और छह ग्रन्थोंका उल्लेख बाबू 'ज्ञानचन्दजीने अपनी ग्रन्थसूचीमें किया है : प्रीतंकर चरित्र (सं० १७२१ ), धर्मसरोवर, - कथाकोश ( १७२२ ), प्रवचनसार (१७२६), भावदीपिका वचनिका और ज्ञानसमुद्र । इनमेंसे मावदीपिका को छोड़कर सब पद्यमें हैं। । १५ खुशालचन्द काला । ये सांगानेर के - रहनेवाले खण्डेलवाल थे । रचनायें तो कोई Jain Education International 1 १६ रूपचन्द । ये पाँड़े रूपचन्दजीसे भिन्न हैं । इनकी बनाई हुई बनारसीकृत नाटकसमयसाकी टीका हमने एक सज्जनके पास देखी थी। बड़ी सुन्दर और विशद टीका है । सं० १७९८ में बनी है । उसमें ग्रन्थकर्ताका परिचय भी दिया गया है, पर वह अब मुझे स्मरण नहीं है । १७ नेणसी मूता । ये ओसवाल जाति के श्वेताम्बर जैन थे । जोधपुर के महाराजा बड़े जसवन्तजी के दीवान थे । मारवाड़ी भाषामें राजस्थानका एक इतिहास लिखकर - जिसे ' मूता नेणसी की ख्यात ' कहते हैं-ये अपना नाम अजर अमर कर गये हैं । सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ मुंशी देवीप्रसादजीने इस ग्रन्थकी बड़ी प्रशंसा की है और इसे एक अपूर्व और प्रामाधिक इतिहास बतलाया है । यह संवत् १७१६ से १७२२ तक लिखा गया है । ऐसी सैकड़ों बातोंका इसमें उल्लेख है जिसका कर्नल टाडके राजस्थान में दूसरे ग्रन्थोंमें पता भी नहीं है । इसमें राजपू For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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