Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 19
________________ अङ्क १] हिन्दी-जैनसाहित्यका इतिहास । प्रभुगुन अनुभव चन्द्रहास ज्यों, खूब खजाना खरच खिलाओ, सो तो रहै न म्यानमें । द्यो सब न्यामत चारा। वाचक 'जस' कहै मोह महा हरि, असवारीका अवसर आवै, जीत लियो मैदानमें ॥६॥ गलिया होय गँवारा ॥३॥ आपका बनाया हुआ ' दिग्पट चौरासी छिनु ताता छिनु प्यासा होवै, बोल ' छप गया है। यह भी हिन्दी पद्यमें है। . खिजमत करावनहारा (1)। पाँड़े हेमराजजीका बनाया हुआ एक 'सितपट दौर दूर जंगल में डारे, चौरासी बोल ' नामका खण्ड ग्रन्थ है, जिसमें ___झुरै धनी विचारा ॥ ४॥ . श्वेताम्बर सम्प्रदायमें जो चौरासी बातें दिगम्बर करहु चौकड़ा चातुर चौकस, सम्प्रदायके विरुद्ध मानी गई हैं उनका खण्डन यो चाबुक दो चारा। है। 'दिग्पट चौरासी बोल ' उसीके उत्तरस्वरूप इस. घोरेकौं विनय सिखावो, लिखा गया है। संभव है कि इनकी हिन्दीरचना ज्यों पावो भवपारा ॥५॥ और भी हो, पर हम उससे परिचित नहीं हैं। ९ बुलाकीदास । लाला बुलाकीदासकाजन्म सविनयविजय। ये भी श्वेताम्बरसम्प्रदा- आगरेमें हुआ था। आप गोयलगोत्री अग्रवाल यके विद्वान थे और यशोविजयजीके ही सम- थे। आपका व्येक 'कसावर' था । आपके यमें हुए हैं। सुनते हैं इन्होंने यशोविजयके ही पूर्वपुरुष बयाने (भरतपुर) में रहते थे। साहुसाथ रह कर काशीमें विद्याध्ययन किया था । अमरसी-प्रेमचन्द-श्रमणदास-नन्दलाल और उपाध्याय कीर्तिविजयके ये शिष्य थे और संवत् बुलाकीदास यह इनकी वंशपरम्परा है । श्रमण१७३९ तक मौजूद थे। ये भी संस्कृतके अच्छे दास अपना निवासस्थान छोड़कर आगरमें आ विद्वान और ग्रन्थकची थे । इनके बनाये हुए रहे थे। आपके पुत्र नन्दलालको सुयोग्य देखकर अनेक ग्रन्थ हैं और वे प्रायः उपलब्ध हैं। इनका पण्डित हेमराजजीने (प्रवचनसार-पंचास्तिकाय'नयकार्णका' नामका न्यायग्रन्थ अंगरेजी टीका टीकाके कर्त्ताने) अपनी कन्या ब्याह दी। सहित छप गया है। काशीमें रहने के कारण उसका नाम 'जैनी' था । हेमराजजीने इस हिन्दीकी योग्यता भी आपमें अच्छी हो गई थी। लड़कीको बहुत ही बुद्धिमती और व्युत्पन्न की जिस संग्रहमें यशोविजयजीके पद छपे हैं थी। बुलाकीदासजी इसीके गर्भसे उत्पन्न हुए उसीमें आपके पद भी 'विनयविलास , के थे। वे अपनी माताकी प्रशंसा इस प्रकार नामसे छपे हैं। पदोंकी संख्या ३७ है । अच्छी करते हैं:रचना है। एक पद देखिएः हेमराज पंडित वक्ष, घोरा झूठा है ऐ, मत भूले असवारा। .. तिसी आगरे ठाइ। तोहि मुधा ये लागत प्यारा, गरग गोत गुन आगरी, अंत होयगा न्यारा ॥घो०॥ सब पूजै जिस पाइ॥ चरै चीज अरु डरै कैदसौं, उपजी ताकै देहजा, . ३ ऊबद चले अटारा। ''जैनी' नाम विख्याति। जीन. कसै तब सोया चाहै, सीलरूप गुन आगरी, खानेकौं होशियारा ॥२॥ प्रीतिनीतिकी पाँति ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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