Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 01 02
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 23
________________ अङ्क १] हरिवंशकी रचना संवत् १८२९ में, आदिपुराणकी १८२४ में और पद्मपुराणकी १८२३ में हुई है । योगीन्द्रदेवकृत परमात्म- प्रकाशकी और श्रीपाल चरित्रकी वचनिका भी आपकी ही बनाई हुई है । पं० टोडरमल्लजी पुरुषार्थसिद्धुपायकी भाषाटीका अधूरी छोड़ गये थे । वह भी दौलतरामजीने पूरी की है । पुण्यास्रवकी वचनिका सं० १७७७ में बनी है। मालूम नहीं वह इन्हीं की है या किसी अन्य दौलतरामकी | हिन्दी-जैन साहित्यका इतिहास । १९ खड्गसेन ( आगरानिवासी ) त्रिलोकदर्पण छन्दोबद्ध ( वि० सं० १७१३) । । १ टोडरमल । इस शताब्दी के सबसे प्रसिद्ध लेखक पं० टोडरमलजी हैं । दिगम्बरजैन सम्प्रदायमें आप ऋषितुल्य माने जाते हैं। केवल ३२ ही वर्षकी अवस्थामें आप इतना काम कर रचनासे जैनसमाजमें तत्त्वज्ञानका बन्द हुआ गये हैं कि सुनकर आश्चर्य होता है । आपकी प्रवाह फिरसे बहने लगा । जहाँ कर्म फिलासफीकी चर्चा करना केवल संस्कृतके - प्राकृतके विद्वानोंके २१ जिनहर्ष (पाटननिवासी ) | श्रेणिक चरित्र हिस्से में था, वहाँ आपकी कृपासे साधारण हिन्दी छन्दोबद्ध (१७२४) । २२ देवीसिंह ( नरवरनिवासी) । उपदेशसि - वान्तरत्नमाला छन्दोवद्ध ( संवत् १७९६ ) । २३ जीवराज । ( बड़नगर निवासी ) | परमात्मप्रकाश वचनिका ( सं० १७६२ ) । जाननेवाले लोग भी कर्मतत्त्वोंके विद्वान् बनने लगे । आप जयपुरके रहनेवाले खण्डेलवाल जैन थे । सुनते हैं जयपुर राज्यके दीवान अमरचन्द्रजीने आपको अपने पास रख कर विद्याध्ययन कराया था । १५-१६ वर्षकी उम्र में ही आप ग्रंथरचना करने लगे थे । जैनधर्मके असाधारण विद्वान् थे । आपका सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ 'गोम्मटसार क्षपणासार और २४ ताराचन्द । ज्ञानार्णव छन्दोबद्ध । ( सं० १७२८ ) । १ हरखचन्द साधु । श्रीपालचरित्र । रचना - '२५ विश्वभूषणभट्टारक | जिनदत्तचरित्र वचनिका' है, जिसमें छन्दोबद्ध (सं०१७३८ ) । लब्धिसार भी शामिल है । इसकी श्लोकसंख्या लगभग ४५ हजार है । स्वामीके प्राकृत गोम्मटसारकी भाषाटीका है । यह नेमिचन्द्र इसमें जैनधर्म कर्मसिद्धान्तका विस्तृत विवेचन है । दूसरा ग्रन्थ त्रैलोक्यसार वंचनिका है । यह भी प्राकृतका अनुवाद है । इसमें जैनमतके अनुसार भूगोल और खगोलका बर्णन है । इसकी श्लोक संख्या लगभग १०-१२ हजार होगी । तीसरा ग्रन्थ गुणभद्रस्वामीकृत संस्कृत आत्मानुशासनकी वचनिका है। इसमें बहुत ही हृदयग्राही आध्यात्मिक उपदेश है । भर्तृहरिके वैराग्यशत २० जगतराय । `आगमविलास, सम्यक्त्वकौमुदी, और पद्मनंदिपच्चीसी (सं० १७२१ ) । सब छन्दोबद्ध | मिश्रबन्धुविनोदमें इस शताब्दीके नीचे लिखे कवियों का भी उल्लेख किया है: काल १७४० । २ जिनरंगसूरि । सौभाग्यपंचमी। समय १७४१ । २६ धर्ममन्दिर गणि । प्रबोधचि - न्तामणि, चोपीमुनिचरित्र । रचनाकाल १७४१ - १७५० । Jain Education International २१ ४ हंसविजय जती । कल्पसूत्रकी टीका । समय १७८० । ५. ज्ञानविजय जती | मलयचरित्र । १७८१ संवत् । ६ लाभवर्द्धन । उपपदी । संवत् १७११ । उन्नीसवीं शताब्दी | For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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