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(१५) वने मत अय दिला, शिकार करना छोडदे ।। देर ।। या जुल्म कर जालिम बने, पापों से घट को क्यों भरे । दिन चार का जीना तुरं, शिकार करना छोडद ।। १ ।। लभर सांभर रोज़ हिरन, खरगोश जङ्गल के पशू । इन्सान को देखी डरे, शिकार करना छोडदे ।। २ ।। तेरा तो एक खेल है, और उसके तो जाते हैं गाण । मत सून का प्यासा पने, शिकार करना छोडदे ॥३॥ कसूरों को सतावे, खोप तूं ताता नही । वदला फिर देना पडे, शिकार करना छोडदे ॥ ४ ॥ जैसी प्यारी जान तुझको, एसी गरों की भी जान । रहम ला दिल में जरा. शिकार करना छोडदे ॥ ५॥ जितने पशु के हाल है, उतने जन्म कातिल पर । मनुस्मृति देखले, शिकार करना बदं ॥ ६ ॥ देवान आपस में लड़ाना, निशाना लगाना जान पा । इदीस में लिखा मना, शिकार करना बोडदे ॥ ७ ॥ गर्भवती हिरनी को, श्रेणिक ने मारा तीर से । पद ना के अन्दर गया, शिकार करना छोडद ॥ ८॥न से हानी नरक, श्रीवीर का फरमान है। चौथमल बोटे समक लं, शिकार करना होडदे ॥ ६ ॥
तर्ज पूर्वक गजल चोरी निषेध पर। राजन तेरी ए जायगी चोरी करना चोदई । मान
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