Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan
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study of the ethical doctrines in jainism, presenting his details is an authentic manner.” अर्थात् “आशाधर का धर्मामृत (1240 ईस्वी) दो प्रकार के आचार-धर्म को एक इकाई में प्रस्तुत करने का संभवतः सुन्दर प्रयास है। जैन साहित्य में साधु के जीवन से संबंधित शोध-प्रबन्ध प्रचुर मात्रा में हैं। संक्षिप्त सर्वेक्षण के लिए कोई भी व्यक्ति S. B. Deo द्वारा लिखित 'History of Jaina Monachism' (Deccan College, Poona 1956) का उपयोग कर सकता है। गृहस्थों के लिए प्रतिपादित आचार-धर्म का आलोचनात्मक और .. ऐतिहासिक अध्ययन आर. विलियम्स द्वारा लिखित जैन योग (Oxford University Press, Oxford 1963) नामक उत्तम निबन्ध में प्राप्त होता है। प्रस्तुत कृति (1967) में डॉ. के. सी. सोगाणी ने जैनधर्म के आचार-सम्बन्धी सिद्धान्तों के सम्पूर्ण आयामों का उत्कृष्ट सर्वेक्षण करने का प्रयास किया है। उन्होंने जैनधर्म के आचार-सम्बन्धी सिद्धान्तों को प्रामाणिक रीति से प्रदर्शित करते हुए उनका सर्वाङ्गपूर्ण अध्ययन हमें प्रदान किया।”
12 अप्रेल सन् 1971 को प्रो. दलसुख मालवणिया ने लिखाआपके द्वारा भेजी गयी “Ethical Doctrines in Jainism” मिली। खेद है इतनी अच्छी पुस्तक मैं अब तक नहीं देख सका। आपकी यह पुस्तक जैन आचार विषय को लेकर अन्तर और बाह्य सभी पहलुओं की चर्चा से संपन्न है। आपने मुनि और गृहस्थ के आचारों का निरूपण तो किया ही है, किन्तु जैन तत्त्वज्ञान के साथ उसका क्या संबंध हैउसका भी सुन्दर विवेचन किया है। इतना ही नहीं किन्तु भूमिका रूप में वैदिक परम्परा के आचार के प्रकाश में जैन आचार को देखने का जो प्रयत्न है, वह आपकी पैनी दृष्टि का परिचायक है। साथ ही मिस्टीसिझ्म और भक्तिवाद का जैन आचार के साथ किस प्रकार मेल है तथा
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