Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 147
________________ है और अस्तित्व है।22 आचारांग का कथन है- “वहाँ से सब स्वर लौट आते हैं जहाँ चिन्तन को कोई स्थान नहीं है और न ही बुद्धि वहाँ प्रवेश कर सकती है।” “सिद्ध बिना शरीर के हैं, न उनके पुनर्जीवन हैं, न पुद्गल से कोई संबंध है, वे स्त्री नहीं हैं, पुरुष नहीं हैं, नपुंसक नहीं हैं, वे ज्ञाता-दृष्टा हैं किन्तु उनका कोई सादृश्य नहीं हैं।"223 आत्मा की यह अवस्था रहस्यात्मक यात्रा की समाप्ति है। यह अंतिम लक्ष्य है जिसके लिए आत्मा प्रारंभ से ही संघर्ष कर रहा था। दूसरे शब्दों में सिद्धों का इतिहास बन्धन से स्वतंत्रता की ओर गमन का इतिहास है। यह नैतिक और आध्यात्मिक प्रयत्नों में विजय का इतिहास है। 222. नियमसार, 178, 179, 180, 181 223. Acāranga - Sutra, 1-5-6-3-4, P.52 Ethical Doctrines in Jainism Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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